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मोदी सरकार के अब्दुल कलाम होंगे आरिफ मोहम्मद? ट्विटर पर हो रहे हैं ट्रेंड, राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के क्यों लग रहे कयास

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नई दिल्ली। देश के अगले राष्ट्रपति को लेकर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम खूब चर्चा में है। आरिफ मोहम्मद खान को विशेषकर मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखने के लिए जाना जाता है। हाल ही में उपजे पैगंबर विवाद के बाद वे ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। उन्होंने कतर द्वारा सार्वजनिक माफी की मांग को महत्वपूर्ण नहीं कहकर खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि लोगों को प्रधानमंत्री और आरएसएस पर ध्यान देना चाहिए जिन्होंने भारत की समावेशिता की परंपरा को मजबूत करने की अपील की है।

दरअसल बीते कुछ सालों में भाजपा पर जिस तरह से मुस्लिमों को टारगेट करने की राजनीति करने के आरोप लगे हैं, उसकी काट के लिए वह किसी मुस्लिम चेहरे पर विचार कर सकती है। आरिफ मोहम्मद खान बड़े स्कॉलर हैं और तीन तलाक को खत्म किए जाने की वकालत करने वाले मुखर चेहरे थे। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का लंबा राजनीतिक अनुभव है। शाह बानो मामले में सरकार की कार्रवाई से असहमत होने के बाद 1986 में राजीव गांधी सरकार में अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद आरिफ मोहम्मद खान ने मुसलमानों के बीच प्रगतिशील चेहरे के रूप में ख्याति अर्जित की थी। आरिफ मोहम्मद खान तीन तलाक को खत्म करने के मुखर पैरोकार थे। आरिफ मोहम्मद कई मौकों पर मोदी सरकार की नीतियों की तारीफ भी कर चुके हैं।

मोदी सरकार के अब्दुल कलाम होंगे आरिफ मोहम्मद?
ट्विटर पर लोग मोदी सरकार को सलाह तक दे रहे हैं कि वे आरिफ मोहम्मद को राष्ट्रपति के तौर पर मैदान में उतारें। लोग कह रहे हैं कि क्या आरिफ मोहम्मद खान पीएम मोदी के दूसरे कलाम होंगे। बता दें कि इससे पहले 2002 में अटल सरकार ने भी डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का नाम राष्ट्रपति के लिए प्रपोज कर सभी को चौंका दिया था। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार भी इसी तरह का फैसला कर सकती है। इसकी वजह ये भी है कि भाजपा सरकार आरिफ मोहम्मद को एक प्रगतिशील मुस्लिम चेहरा मानती है।

चर्चा में आया था मायावती का नाम
आरिफ मोहम्मद खान के नाम पर कयास इसलिए भी लगाए जा रहे हैं क्योंकि वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दोबारा बनाए जाने को लेकर भाजपा की ओर से किसी स्पष्ट संकेत नहीं आया है। इस साल की शुरुआत में, दावा किया गया था कि बसपा प्रमुख मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को कथिततौर पर जोर-शोर से नहीं लड़ा था क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में भाजपा के साथ एक श्सौदाश् किया था। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इन दावों का उल्लेख किया था, हालांकि मायावती ने घोषणा की कि उन्हें शीर्ष पद में कोई दिलचस्पी नहीं है। हाल के दिनों में, कुछ राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई गई हैं कि इस पद के लिए भाजपा द्वारा एक मुस्लिम को नामित किया जा सकता है। ट्विटर यूजर्स ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की संभावनाओं का हवाला दिया, क्योंकि उन्हें आगामी राज्यसभा चुनावों के लिए फिर से नामांकित नहीं किया गया था।

मुख्तार अब्बास नकवी के नाम पर भी हो रही चर्चा
उनके अलावा मुख्तार अब्बास नकवी का नाम भी चर्चा में है। इसकी वजह यह है कि केंद्रीय मंत्री होने के बाद भी उन्हें राज्यसभा चुनाव में नहीं उतारा गया है। इसके अलावा रामपुर के लोकसभा उपचुनाव में उतारने के कयास थे, लेकिन वहां भी उन्हें मौका नहीं मिला। केंद्रीय मंत्री बने रहने के लिए राज्यसभा या लोकसभा में से किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी है। ऐसे में यह कयास लग रहे हैं कि पार्टी उन्हें राष्ट्रपति या फिर उपराष्ट्रपति बना सकती है। इस चुनाव में सांसदों और विधायकों वाले निर्वाचक मंडल के 4,809 सदस्य मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के उत्तराधिकारी का चुनाव करेंगे।



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