रूस से भारत की तेल खरीद ने तोड़ा रिकॉर्ड
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मॉस्को। यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर बड़ी संख्या में आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। इसके चलते आर्थिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं और कभी खाड़ी देशों से बड़ी मात्रा में तेल खरीदना वाले भारत ने अब रूस से खरीद में इजाफा कर दिया है। इसके अलावा चीन ने भी रूस से तेल की खरीद बढ़ा दी है। बीते एक सप्ताह में रूस से भारत आने वाले तेल की मात्रा 74 मिलियन से लेकर 79 मिलियन बैरल तक थी। यह बहुत बड़ा आंकड़ा है क्योंकि यूक्रेन पर फरवरी में रूस के अटैक से पहले यह 27 मिलियन बैरल ही था। इस तरह रूस से तेल के आयात में दोगुने से ज्यादा का इजाफा हो चुका है। कमोडिटी डेटा फर्म केप्लर ने यह जानकारी दी है।
यही नहीं रूस से तेल खरीदने में पहला नंबर अब तक यूरोप का होता था, लेकिन अप्रैल महीने में एशियाई देश उससे आगे निकल गए। यही नहीं अनुमान है कि मई में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। इस आंकड़े से पता चलता है कि दुनिया में कारोबार का स्वरूप कितनी तेजी से बदला है। दरअसल यूक्रेन पर अटैक के बाद से अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन की कंपनियों ने रूस पर कई पाबंदियां लगाई हैं। इसके चलते रूस को नए ग्राहकों की तलाश में एशिया की ओर रुख करना पड़ा है। इसका फायदा भारत और चीन जैसे देशों को मिला है, जिन्हों कम कीमत पर अपने तेल भंडार को तेजी से भरने का काम शुरू किया है।
केप्लर में कार्यरत और तेल मार्केट की विश्लेषक जेन शेई ने कहा कि एशिया में कई देश ऐसे हैं, जो आर्थिक राहत के चलते रूस से तेल की खरीद बढ़ा रहे हैं। इसमें राजनीतिक स्टैंड से ज्यादा फायदे की बात शामिल हैं। हालांकि वह कहती हैं कि आने वाले वक्त में रूस से भारत की तेल खरीद थोड़ी कम हो सकती है। इसकी वजह अमेरिका की ओर से इस खरीद पर चिंता जाहिर करना है। जेन शेई कहते हैं कि प्रतिबंधों के दौर में रूस ने बड़े पैमाने पर भारत और चीन को तेल बेचकर राहत पाई है। चीन से भी कहीं ज्यादा खरीद भारत कर रहा है।
माना जा रहा है कि मई में तेल की खरीद अप्रैल के मुकाबले कम होगी, लेकिन फिर भी पहले के मुकाबले कहीं अधिक होगी। गौरतलब है कि यूरोपीय देशों और अमेरिका की ओर से रूस से भारत की तेल खरीद पर सवाल खड़े किए गए थे। इस पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने करारा जवाब देते हुए कहा था कि जिनता यूरोप एक दोपहर में रूस से तेल खरीदता है, उतना तो भारत एक महीने में नहीं लेता। उनके इस जवाब को अमेरिका समेत वैश्विक शक्तियों के लिए एक संकेत माना गया था कि भारत किसी के भी दबाव में नहीं आएगा।
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