उत्तराखंड के 7 अनूठे प्रोडक्ट को मिली वैश्विक पहचान, और 11 प्रोडक्ट्स के लिए GI टैग की कवायद
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देहरादून. लोककला आधारित हस्तशिल्प की बात हो, या पहाड़ी लोकजीवन के स्वादिष्ट भोजन की, उत्तराखंड की विरासत काफी समृद्ध रही है. अब इस धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है क्योंकि राज्य के 7 ऐसे अनूठे प्रोडक्ट्स को जीआई टैग मिला है. वास्तव में सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाने वाले अनोखे व्यावसायिक प्रोडक्ट्स को संरक्षित करने के उद्देश्य से जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग से नवाज़ा जाता है. अब यह उपलब्धि उत्तराखंड के जिन 7 प्रोडक्ट्स के हाथ लगी है, उसके बारे में विस्तार से जानिए.
किन प्रोडक्ट्स को मिला जीआई टैग?
1. कुमाऊं का च्यूरा तेल
2. एक बंजारे समुदाय भोटिया द्वारा बनाए जाने वाले कालीन/दरी
3. खास मौकों पर बनाई जाने वाली पारंपरिक कलाकृति ऐंपण
4. बांस के रेशों को गूंथकर बनाई जाने वाली कलाकृति यानी रिंगाल क्राफ्ट
5. तांबे के कुछ प्रोडक्ट्स
6. स्थानीय फैब्रिक को कातकर बनाए जाने वाले कंबल यानी थुल्मा
7. मुन्स्यारी का राजमा
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और 11 प्रोडक्ट्स के लिए है कवायद
उत्तराखंड के कृषि आधारित अनूठे उत्पादों के लिए भी राज्य सरकार जीआई टैग जुटाने की कसरत कर रही है. लाल चावल, बेड़िनाग चाय, मंडुआ, झांगोरा, बुरान शर्बत, काला भट्ट, चौलाई/रामदाना, अल्मोड़ा लाखोरी मिर्च, पहाड़ी तुअर दाल, माल्टा फ्रूट जैसे करीब एक दर्जन प्रोडक्ट्स को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए यह कवायद की जा रही है. बताया जाता है कि विशेष भौगोलिक पहचान का यह टैग मिलने से इन उत्पादों की ब्रांडिंग वैश्विक स्तर पर हो सकेगी, जिससे इनके बेहतर दाम मिलेंगे. यह उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से भी बड़ा कदम हो सकता है.
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सबसे पहले तेज पत्ता को मिला था जीआई टैग
जीआई टैग्स मिलने पर राज्य सरकार के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, ‘राज्य के मौलिक उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय पहचान पा रहे हैं तो यह गर्व का विषय है. यह सिलसिला ‘वोकल फॉर लोकल’ के लिहाज़ से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उत्तराखंड की ब्रांडिंग के लिए अहम होगा.’ उनियाल ने यह भी बताया कि उत्तराखंड की कुल 6.48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में से 3.50 लाख हेक्टेयर में ही पारंपरिक प्रोडक्ट्स का उत्पादन किया जाता है. तेजपत्ता राज्य का पहला प्रोडक्ट था, जिसे जीआई टैग मिला था.
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