उत्तराखंड

राज्यपाल ने अर्थराइटिस रोग के उपचार एवं बचाव विषय पर आयोजित सेमिनार में किया प्रतिभाग

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देहरादून। राज्यपाल गुरमीत सिंह ने सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग करते हुए कहा कि अर्थराइटिस रोग से संबंधित बीमारियों की रोकथाम एवं जागरूकता हेतु इस सेमिनार का आयोजन किया गया है। जिसमें विषय विशेषज्ञों द्वारा अपने विचार रखे गए। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजनों के माध्यम से समस्याओं के समाधान हेतु रास्ते तलाशे जाते हैं। उन्होंने कहा कि देश में अर्थराइटिस रोगियों की संख्या बढ़ रही है और यह सभी प्रकार के आयु वर्गों में देखने को मिल रहा है।

राज्यपाल ने कहा कि सेमिनार में विषय विशेषज्ञों द्वारा अर्थराइटिस रोग से संबंधित जानकारियां, उपाय एवं निदान बताये जो उपस्थित डॉक्टरों के लिए बेहद लाभदायक होगा। उन्होंने कहा कि कोरोना के बाद हमें यह सबक मिला है कि हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति बेहद संवेदनशील रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अर्थराइटिस के ईलाज में होम्योपैथी, एलोपैथी और आयुर्वेद का समान महत्व है। राज्यपाल ने कहा कि जल्द ही अर्थराइटिस से संबंधित बीमारियों के संबंध में एक कैम्प का भी आयोजन किया जायेगा जिसमें इसी प्रकार विशेषज्ञों को उपचार हेतु आमंत्रित किया जायेगा।

सेमिनार में उपस्थित सचिव राज्यपाल डॉ. रंजीत सिन्हा ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि व्यक्ति के जीवन में जोड़ों का मूवमेंट जरूरी है। जोड़ों के बारे में प्रत्येक व्यक्ति को जानकारी होना आवश्यक है। इस दौरान मुख्य वक्ता प्रो0 ले ज वेद चतुर्वेदी रियूमैटोलोजिस्ट सर गंगा राम हॉस्पिटल नई दिल्ली ने अपने संबोधन में बताया कि किस प्रकार एक सामान्य व्यक्ति अर्थराइटिस की पहचान कर सकता है। उन्होंने बताया कि यह एक मिथक है कि अर्थराइटिस बुढ़ापे की बीमारी है। यह बुढ़ापे के साथ-साथ कम उम्र में भी हो सकता है। बुजुर्ग आबादी में अधिकांश गठिया या अर्थराइटिस टूट-फूट के कारण होता है जबकि युवा आबादी में गठिया या अर्थराइटिस रीड की हड्डी, गर्दन, पीठ इत्यादि में हो सकता है।

प्रो0 चतुर्वेदी ने बताया कि अर्थराइटिस होने के पीछे जीवन शैली और आहार की बडी भूमिका होती है इसका मुख्य कारण भी अनुचित आहार होता है। उन्होंने रोग से ग्रसित लोगों हेतु निदान और उचित उपचार के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पहचान के उपरान्त इस रोग का उपचार संभव है।

सेमिनार में डॉ. नेहल शाह ने अर्थराइटिस में फिजियोथैरेपी का महत्व एवं फिजियोथैरेपी से अर्थराइटिस को किस प्रकार उपचार किया जाता है। उन्होंने बताया कि नियमित व्यायाम, संतुलित भोजन एवं वजन और दैनिक कार्यों में सही पोश्चर अर्थराइटिस रोग से निजात दिला सकता है। उन्होंने मोबाइल फोन के इस्तेमाल को भी अर्थराइटिस रोग के लिए जिम्मेदार बताया। डॉ.वर्षा सक्सेना ने अर्थराइटिस रोग में आयुर्वेदिक ईलाज के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने मर्म चिकित्सा, पंचकर्म चिकित्सा, योग व आयुर्वेदिक दवाईयों से अर्थराइटिस रोग के उपचार की जानकारी दी। डॉ.बी.के.एस.संजय ने अर्थराइटिस के शल्य चिकित्सा उपचार के बारे में अपने विचार रखे।

इस सेमिनार में कुलपति एच.एन.बी उत्तराखण्ड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय प्रो.हेम चन्द्रा द्वारा लिखित पुस्तक “Care Your Health” का विमोचन राज्यपाल द्वारा किया गया। इस दौरान कुलपति आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय प्रो. सुनील जोशी, वित्त नियंत्रक डॉ. तृप्ति वास्तव, डॉ. महावीर सिंह, डॉ. ए.के.सिंह सहित विभिन्न चिकित्सालयों से डॉक्टर व मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।



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