उत्तराखंड

Char Dham Highway पर सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बहस : देश की सुरक्षा अहम या पर्यावरण? जानिए किसने क्या कहा

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नई दिल्ली. उत्तराखंड में चार धाम परियोजना के तहत हाईवे के विस्तार और चौड़ीकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि देश की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने माना कि ‘पर्यावरण और राष्ट्रीय सुरक्षा’ दोनों की ज़रूरतों में कोई तालमेल बनाया जाना चाहिए, लेकिन फिर भी कोर्ट ने देश की सीमा सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही. वास्तव में, एक याचिका पर सुनवाई के दौरान पूरा मामला पर्यावरण बनाम नेशनल सिक्योरिटी का हो गया, जिसमें केंद्र सरकार ने भी पक्ष रखा और सड़कों को ज़रूरी निर्माण बताया.

क्या है यह पूरा मामला?
चार धाम हाईवे परियोजना के तहत गढ़वाल के हिमालयीन इलाकों को सड़क के साथ जोड़ने के लिए केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को एक सूत्र में पिरोने वाली 899 किलोमीटर लंबे मार्ग के विस्तार के लिए केंद्र ने योजना बनाई. केंद्र चाहता है कि इस हाईवे को देहरादून के पास और बॉर्डर सड़कों को 10 मीटर तक चौड़ा किया जाए. हालांकि पहले सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों को 5 मीटर तक ही चौड़ा करने की इजाज़त दी थी. इधर, एक एनजीओ ‘सिटीज़न्स फॉर ग्रीन दून’ ने इन सड़कों के निर्माण को पर्यावरण के लिए खतरा बताकर चुनौती दी. अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में तीन पक्ष हो गए.

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याचिका और केंद्र सरकार के पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सड़क निर्माण को देश की सुरक्षा के लिहाज़ से अहम माना.

क्या हैं सरकार के दावे और तर्क?
सरकार के दावे इस हाईवे के विस्तार को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए हैं. इस मामले में सरकार का कहना है कि युद्ध की स्थिति में बॉर्डर तक टैंक, असलहा, सैन्य मदद और जवानों की आवाजाही के लिहाज़ से यह रास्ता महत्वपूर्ण है. दूसरी तरफ केंद्र के तर्क चीन की हरकतों से जुड़े हैं. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा, ‘चीन सीमा के दूसरी तरफ इमारतें और हेलिपैड बना रहा है. कई ट्रकों से असलहे, रॉकेट लॉंचर और टैंक उस तरफ सड़कों पर चल रहे हैं… हम नहीं चाहते हमारे सैनिक फिर 1962 जैसे हालात देखें.’

क्या हैं याचिका में आरोप और तर्क?
एनजीओ की तरफ से वरिष्ठ एडवोकेट कॉलिन गोनसाल्विज़ ने कोर्ट में पहले तो हाल में उत्तराखंड में आई आपदा के बारे में बताया. पहाड़ों को हो रहे नुकसान के बारे में भी रिपोर्ट्स के हवाले से कोर्ट को जानकारी दी गई. फिर उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा कि रक्षा की ज़रूरतों को पर्यावरण के नाम पर नकारा जा सकता है लेकिन आर्मी ने इन सड़कों को चौड़ा करने के लिए कभी नहीं कहा. किसी प्रभावशाली राजनीतिक शक्ति की तरफ से कहा गया कि हम चार धाम यात्रा के लिए बड़े हाईवे चाहते हैं. और आर्मी न चाहते हुए भी इस इच्छा में शरीक हुई.’

और कोर्ट ने क्या रुख इख्तियार किया?
कॉलिन ने कोर्ट में ये तर्क भी दिए कि किस तरह 2013 की उत्तराखंड आपदा के बाद पर्यावरण के खिलाफ कई प्रोजेक्ट्स पर रोक लगाई गई थी. इस पूरी बहस के बाद कोर्ट ने अपना पक्ष रखते हुए राष्ट्र की रक्षा को प्राथमिकता बताते हुए इसके लिए अपग्रेडेशन को ज़रूरी माना. जस्टिस सूर्यकांत ने कॉलिन से यह भी पूछा कि चीन की तरफ के हिमालयी पर्यावरण को लेकर हालात के बारे में उनके पास क्या रिपोर्ट्स हैं. जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने क्या कुछ महत्वपूर्ण कहा, देखिए.

* रक्षा और पर्यावरण दोनों की ज़रूरतों में सामंजस्य होना चाहिए.
* केंद्र कहता है कि यह सब पर्यटन के लिए हो रहा है, तो हम सख्ती बरत सकते हैं लेकिन जब यह सीमाओं की रक्षा की बात है तो हमें गौर और बारीकी से काम लेना होगा.
* इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि देश की सुरक्षा दांव पर लगी है.
* क्या यह कहा जा सकता है कि पर्यावरण देश की रक्षा से ज़्यादा ज़रूरी है? या यह कि रक्षा के उपाय किए जाने से पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा?

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