Bihar Politics: RJD और कांग्रेस के रास्ते जुदा होने से अब ऐसे बदल जाएगी बिहार की सियासी बिसात?
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पटना. बिहार के सियासी गलियारे में अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या सचमुच में कांग्रेस और आरजेडी (Congress and RJD) की राह जुदा हो गई है? यूपीए (UPA) के दो सबसे पुराने घटक दलों की राह अलग होने के पीछे क्या कहानी (Story) हुई? दोनों दलों के अलग होने से किसको फायदा और किसको नुकसान होगा? ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या कांग्रेस बिहार में अब खुद अपना जनाधार बढ़ाने जा रही है? ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस भविष्य में बिना आरजेडी से गठबंधन किए चुनाव जीत भी सकती है? कांग्रेस और आरजेडी के अलगाव पर राजनीतिक विश्लेषकों का अलग-अलग नजरिया है. कुछ जानकार बताते हैं कि अलग होने के कई कारण हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण जो कारण है वह है सीपीआई नेता और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) का कांग्रेस में आना.
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को कन्हैया कुमार को कांग्रेस में आना नागवार गुजरा. लालू यादव के शुभचिंतकों ने उन्हें सलाह दी है कन्हैया के कांग्रेस में आने से उनका माई समीकरण अब बिखर जाएगा. साथ ही कन्हैया के आने से तेजस्वी यादव का भविष्य की राजनीति प्रभावित हो सकती है. आरजेडी के माई समीकरण में कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार के जरिए सेंध लगा सकती है. क्योंकि, मुस्लिमों में कन्हैया कुमार की जबरदस्त लोकप्रियता है और खुद वह भूमिहार वर्ग से आते हैं, जो किसी जमाने में काग्रेस पार्टी का मजबूत वोटबैंक रह चुका है. कन्हैया कुमार के जरिए कांग्रेस भूमिहार और ब्राह्मण वोट में सेंध लगा कर अपनी खिसकती जनाधार को दोबारा से हासिल कर सकती है.
बिहार में टूट गया आरजेडी-कांग्रेस का गठबंधन.
क्यों राहें हुईं जुदा-जुदा
बता दें कि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी का तकरीबन 15 सालों से गठबंधन चला आ रहा था, लेकिन इतना लंबा संबंध महज दो विधानसभा सीटों के उपचुनाव के खातिर टूट गया. हालांकि, जानकारों का मानना है कि यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि आरजेडी और कांग्रेस की राह अलग हो चुकी है. इसके लिए साल 2024 के लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना होगा. क्योंकि, 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी कांग्रेस पर दवाब बनाना चाह रही है. आरजेडी बिहार विधानसभा के दो सीटों के उपचुनाव जीत कर यह संकेत भी देना चाहती है कि वह अब अपनी शर्तों के साथ कांग्रेस के साथ गठबंधन करेगी न कि कांग्रेस की शर्तों के साथ?
क्या कहते हैं जानकार
बिहार को करीब से जानने वाले पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘गठबंधन टूटने की बात कहना अभी जल्दबाजी होगी. बिहार में 30 अक्टूबर को दो विधानसभा सीटों के उपचुनाव होने हैं और दोनों पार्टियों ने अलग-अलग उम्मीदवार उतारे हैं. इस चुनाव में दोनों दलों के नेताओं के बीच तल्ख बयानबाजी भी देखने को मिली है, लेकिन इसके बावजूद दोनों दलों में कई सामानताएं हैं. शायद वही सामानताएं या मजबूरी भविष्य में दोनों को एक साथ लाए. जहां तक बात है संबंध टूटने की तो निश्चित तौर पर कन्हैया कुमार एक बड़ा फैक्टर रहा होगा. कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आने से आरजेडी में बैठे एक-दो बुद्धिजीवियों को नींद उड़ गई है. कन्हैया कुमार एक फायर ब्रांड नेता है, जिसे कांग्रेस को अभी सख्त जरूरत थी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि कन्हैया भविष्य में तेजस्वी यादव के लिए चुनौती बन सकता है. कन्हैया की मुस्लिमों के बीच जो लोकप्रियता को कांग्रेस पार्टी अब भुनाएगी और इससे आरजेडी को भी कंट्रोल में रखेगी. कांग्रेस ने इन्हीं खुबियों को देखते हुए कन्हैया को पार्टी में लिया है. अगर इस उपचुनाव में आरजेडी की जीत होती है तो निश्चित तौर पर आरजेडी अपनी शर्तों के साथ कांग्रेस के साथ राजनीति करेगी, लेकिन अगर चुनाव में आरजेडी की हार होती है तो फिर कांग्रेस के साथ जाना आरजेडी की मजबूरी होगी.’
तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव में कई राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर.
कन्हैया कुमार के जरिए कांग्रेस होगी मजबूत?
पांडेय आगे कहते हैं, ‘पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी को अपने परंपरागत वोट से हट कर भी वोट पड़े थे. ऐसे में अगर कांग्रेस मुस्लिम और यादव वोटबैंक में सेंधमारी करती है तो उसका बड़ा नुकसान आरजेडी को ही उठाना पड़ेगा. खासकर मुस्लिम वोट बंटे तो आरजेडी को बड़ा नुकसान हो सकता है. राज्य में 17 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. मुस्लिम वोट बैंक में सेंध का मतलब होगा जेडीयू और बीजेपी गठबंधन को वॉकऑवर दे देना. इसलिए आखिर में दोनों दल साथ ही चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस अभी खुद को संगठन के स्तर पर मजबूत कर रही है.’
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साल 2009 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में फिर साथ आ गए. कांग्रेस राज्य में तीसरा कोण बनने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन उसके साथ समस्या है कि उसका संगठन पहले जैसा नहीं रहा. कांग्रेस पार्टी पप्पू यादव के भी संपर्क में है और कोशिश कर रही है कि सीमांचल इलाके में खासकर सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया और सहरसा में पप्पू यादव की लोकप्रियता को भुनाया जाए. इसलिए, अगर कांग्रेस राज्य में तीसरा कोण बनने में कामयाब हो जाती है तो आरजेडी के साथ-साथ जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को भी नफा-नुकसान या कुछ भी हो सकता है.
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