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क्या है यूक्रेन विवाद? आखिर क्यों रूस और अमेरिका के बीच तनी हैं तलवारें

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नई दिल्ली. पूर्व सोवियत रूस के दो अलग हुए भाई रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) अपनी सीमाओं पर सेनाओं की बड़े पैमाने पर तैनाती को लेकर आमने-सामने हैं. नाटो (NATO) सैन्य गठबंधन के नेता, अमेरिका का कहना है कि रूस यूक्रेन के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाने की योजना बना रहा है. हालांकि रूस ने इस तरह की किसी भी योजना से इनकार किया है. 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया था तभी से उसके और यूक्रेन के बीच तनाव बना हुआ है.

बताया जा रहा है कि स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हाल ही में हुई एक बैठक में अमेरिका के विदेश सचिव एंटोनी ब्लिंकेन ने अपने रूसी समकक्ष विदेशी मंत्री सर्गेई लावरोव के सामने दोहराया था कि अमेरिका ने रूस को यूक्रेन के साथ पश्चिमी सीमा से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने का आह्वान किया है.
अमेरिकी सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक, ब्लिंकेन ने साफ कर दिया है कि अगर रूस अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाता है तो अमेरिका और उसके सहयोगी तैयार हैं और रूस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. हालांकि ब्लिंकेन की बातों से यह साफ नहीं था कि कीमत चुकाने से उनका क्या मतलब था. उऩका मतलब किसी तरह की सैन्य प्रतिक्रिया से था या कुछ और था.

यूक्रेन ने दावा किया है कि रूस के 90 हज़ार से ज्यादा सैनिक सीमा पर जुटे हैं और उनके साथ बख्तरबंद गाड़ियां और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियां भी मौजूद हैं. इसी को लेकर यूक्रेन और नाटो गठबंधन चिंतित हैं कि रूस किसी तरह के आक्रमण की कोई योजना तो नहीं बना रहा है. उधर रूस का कहना है कि यूक्रेन ने 1 लाख 20 हजार सैनिकों को सीमा पर तैनात कर रखा है और वह पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्र को दोबारा हासिल करने में लगा हुआ है. यूक्रेन ने इस आरोप को गलत ठहराया है.

क्या यह अचानक पैदा हुआ तनाव है?
रूस और यूक्रेन के बीच मतभेद नस्लीय दावे के रूप में सामने आया है. वहीं विशेषज्ञ इस विवाद को भू राजनीतिक चश्मे से देख रहे हैं. यूक्रेन ना तो यूरोप यूनियन और न ही नाटो का हिस्सा है फिर भी उसकी पश्चिमी यूरोप और नाटों के साथ बढ़ती निकटता ने रूस के माथे पर शिकन ला दी है. और वह इसे अमेरिकी नेतृत्व में उसके प्रभावी क्षेत्र में सीधे हस्तक्षेप के रूप में देख रहा है.

2014 में रूस ने क्रीमिया पर तब कब्जा किया जब यूक्रेन की जनता यूरोपीय संघ के साथ गहरे आर्थिक संबंधों पर जोर दे रही थी. इस दिशा में उठाया गए कदम को यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने रद्द कर दिया था, जो भारी विरोध के चलते देश से भाग गए थे. एक महीने बाद मार्च, 2014 को रूस की सेना क्रीमिया में पहुंच गई और उस पर कब्जा कर लिया,और एक विवादित जनमत संग्रह के तहत यह दिखाया गया कि क्रीमिया की जनता ने रूस का समर्थन किया है.

कब्जे के चलते यूक्रेन ने पश्चिमी ताकतों और अमेरिका से रूस के खिलाफ कदम उठाने के लिए मदद मांगी, यह बात रूस को नागवार गुजरी थी.

यूक्रेन की नाटो से कितनी निकटता?
यूक्रेन ने इस मामले के चलते यूरोपीय संघ और नाटो से प्रतिबंध पैकेज तैयार करने और रूस के आक्रामक रवैये के खिलाफ सहयोग की गुजारिश की है. हालांकि रूस नाटो के दिए किसी भी झटके का सामना करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन पुतिन ने मास्को में कहा था कि नाटो की यूक्रेन में किसी भी तरह की सैन्य गतिविधि के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि वह पश्चिमी देशों से भरोसेमंद और दीर्घ अवधि सुरक्षा की गारंटी चाहेंगे और नाटो पूर्व की ओर अपने कदम बढ़ाने से खुद को रोकेगा. पुतिन ने कहा कि वो अमेरिका और उसके सहयोगियों से इस बारे में बात करेंगे जिसमें उन समझौतों पर जोर दिया जाएगा जो नाटो को पूर्व की ओर अपने कदम को बढ़ाने से रोक सके. जिससे रूस को अपने क्षेत्र में किसी की हस्तक्षेप की धमकी मिलती है.

2015 में फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता के साथ रूस और यूक्रेन में शांति कायम रखने को लेकर एक समझौता हुआ था जिसे मिन्स्क समझौता कहा गया था जो अभी भी जैसे तैसे कायम है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह यूक्रेन के प्रतिकूल था.

अमेरिकी की प्रतिक्रिया
अमेरिकी विदेश सचिव ब्लिंकेन ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा था कि रूस के यूक्रेन पर हमले की योजना के उनके पास पुख्ता सबूत हैं. उन्होंने स्टॉकोम में मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि रूस भले ही युक्रेन पर हमले से इनकार करे, लेकिन हम अच्छे से जानते हैं कि वह (पुतिन) कम वक्त में ऐसा करने की क्षमता रखते हैं.

ब्लिंकेन ने कहा कि हमने साफ कर दिया है कि अगर ऐसा कुछ भी होता है तो दृढ़ता से जवाब देंगे जिसमें आर्थिक प्रभाव भी शामिल होगा. अमेरिकी राजनयिक और सैन्य संस्थानों ने हालांकि यह साफ नहीं किया है कि प्रतिक्रिया किस तरह की होगी, बस ब्लिंकेन ने यह कहा कि इसके दीर्घकालिक परिणाम होंगे. वहीं अमेरिकी सैन्य चीफ ऑफ स्टाफ के प्रमुख मार्क मिले ने कहा कि इस तरह से अमेरिका और नाटो देशों के सुरक्षा हित दांव पर लगे हैं, रूस ने ऐसे देश पर सैन्य कार्रवाई की थी जो 1991 से स्वतंत्र था. वहीं रूस का मानना है कि नाटो ने तनाव कम करने और खतरनाक घटनाओं से बचने की हमारे प्रस्तावों की रचनात्मक जांच से इनकार कर दिया है. वहीं गठबंधन का सैन्य ढांचा रूस की सीमाओं के करीब आ रहा है.

इसी बीच रूस और अमेरिका अपने अपने देशों में राजनयिकों के निष्कासन में लगे हुए हैं, रूस ने जहां रूसी विदेश मंत्रालय से अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को 31 जनवरी तक देश छोड़ने को कहा है. यह उन लोगों के लिए है जो तीन साल से मास्को में तैनात थे. वहीं अमेरिका में 27 रूसी राजनयिक और उनके परिवार 30 जनवरी तक अमेरिका छोड़ देंगे.

इसके साथ ही क्रीमिया पर कब्जे के बाद से रूस पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, इसके अलावा यूक्रेन को सैन्य हथियारों की मंजूरी के साथ साथ अमेरिका ने एक अरब डॉलर की रक्षात्मक सहायता भी प्रदान की है.

तनाव कम करने के लिए कोई प्रयास किए गए
ऐसा कहा जा रहा है कि ब्लिंकेन और लावरोव की बैठक के बाद जल्दी ही पुतिन और जो बाइडेन के संपर्क की उम्मीद जताई जा रही है. रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेइ रयाबकोव ने कहा था कि संपर्क होना बहुत ज़रूरी है, हमारी दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं. उधर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेनस्की ने भी रूस के साथ बातचीत पर जोर दिया है.



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