उत्तराखंड

भवाली का टीबी सेनेटोरियम, यहां मरीजों का इलाज करती है चीड़ के पेड़ों की हवा!

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नैनीताल के भवाली में स्थित सेनेटोरियम को 100 साल से ज्यादा का समय हो गया है. यहां टीबी का इलाज किया जाता है. एक समय था जब एशिया में इस सेनेटोरियम की गिनती होती थी. आज भी कई राज्यों से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं. इस टीबी सेनेटोरियम की खासियत है यहां की साफ हवा. चीड़ के जंगलों में स्थित यह सेनेटोरियम अपनी इसी खासियत की वजह से बेहद मशहूर रहा है. दरअसल कथित तौर पर चीड़ के पेड़ से छनी हवा टीबी के इलाज में काफी कारगर होती है.

भवाली स्थित इस सेनेटोरियम को ब्रिटिश सरकार ने 1912 में स्थापित किया था. स्थानीय लोग बताते हैं कि वर्तमान में स्थित टीबी सेनेटोरियम की जमीन रामपुर के नवाब की थी. नवाब की पत्नी को टीबी हो गया था और इलाज न मिलने की वजह से उनकी मौत हो गई थी.

जिसके बाद नवाब ने अपनी जमीन अंग्रेजों को टीबी का अस्पताल बनाने के लिए दे दी थी. यह सेनेटोरियम करीब 18 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें स्टाफ क्वार्टर, वॉर्ड और बाकी जंगल है. जिस तरह आज लोग कोरोना की वजह से मुंह पर मास्क लगाए घूमते हैं, उसी तरह तब टीबी की बीमारी से बचने के लिए मास्क लगाने का चलन था.

कर्नल डॉक्टर कौक्रेन यहां के सबसे पहले चिकित्सा अधीक्षक थे. यहां पहले टीबी के ऑपरेशन भी हुआ करते थे. कार्यालय सहायक तारा सिंह गड़िया बताते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू जब टीबी से ग्रसित थीं, तब उनका इलाज इसी अस्पताल में हुआ था.

जवाहरलाल नेहरू तब जेल में बंद थे. अपनी पत्नी का हाल देखने वह अक्सर यहां आते थे. कमला नेहरू यहां 10 मार्च 1935 से 15 मई 1935 तक करीब 2 महीने के लिए भर्ती रही थीं.

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