उत्तराखंड

महिलाओं को ‘जंगली फलों’ से मिला रोजगार, विदेशों में भी चमोली के इन उत्पादों की मांग

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चमोली जिले के कालेश्वर में महिलाएं घरेलू और जंगली फलों और फसलों से उत्पाद बना रही हैं और इससे उन्हें अच्छी कमाई हो रही है. हार्क अलकनन्दा स्वायत्त समिति के अंतर्गत घाटी के 40 गांवों की महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं. जंगल में पैदा होने वाले विशेष औषधीय गुणों के फल और सब्जी जैसे- लेंगुडा, काफल, बेल, बुरांश, तिमला और तुलसी से यह प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं, जिनकी मांग स्थानीय बाजारों के अलावा विदेशों तक में हो रही है.

वर्तमान में इस समिति के अंतर्गत महिलाओं द्वारा 50 से अधिक उत्पादों से जैम, चटनी, अचार और जूस तैयार किए जा रहे हैं. वहीं मीठी तुलसी से तैयार की जा रही विभिन्न प्रकार की चायपत्ती काफी डिमांड में है.

बता दें कि अलकनन्दा स्वायत्त समिति से वर्तमान में स्थाई और अस्थाई तौर पर करीब 1500 महिलाएं जुड़ी हैं, जो सालाना 70 से 80 हजार रुपये तक कमा रही हैं. हिमालयन रिसर्च एक्शन सेंटर द्वारा इन उत्पादों को प्रमोट और इनकी मार्केटिंग का काम किया जा रहा है.

हार्क अलकनन्दा स्वायत्त समिति के गठन की बात करें तो इसका गठन साल 2009 में हुआ था. हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर के सहयोग से अलकनन्दा घाटी के आसपास के गांवों के महिला स्वयं सहायता समूहों को को-ऑपरेटिव सोसाइटी में बदल दिया गया. इस काम में हार्क संस्था के संस्थापक डॉक्टर महेंद्र कुंवर ने अहम रोल निभाया था. पहले समूहों को सिर्फ बचत खाता और लोन संबंधी गतिविधियों से जोड़ा गया लेकिन बाद में उन्हें रोजगार से जोड़ने के मकसद से कालेश्वर में सोसाइटी का प्लांट तैयार कर फूड प्रोसेसिंग की कई मशीनें लगाईं और फिर महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई.

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