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चंद्रयान-3 की सफलता के बाद आज लॉन्च होगा आदित्य-एल1

नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक उतारकर इतिहास रचा। उत्साह से लबरेज राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी आज आदित्य-एल1 मिशन को लॉन्च करेगी। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है। चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता के बाद अब दुनिया की नजर आदित्य-एल1 मिशन पर होगी। आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है। दरअसल, लैग्रेंजियन बिंदु वे हैं जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। इस वजह से एल1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान के उड़ने के लिए किया जा सकता है।

भारत का महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा। आदित्य-एल1 मिशन सूर्य का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड का एक सेट ले जाएगा। विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग यानी सौर कोरोना और सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोटों यानी कोरोनल मास इजेक्शन की गतिशीलता का अध्ययन करेगा।

सोलर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) नामक पेलोड अल्ट्रा-वायलेट (यूवी) के निकट सौर प्रकाशमंडल और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा। इसके साथ ही SUIT यूवी के नजदीक सौर विकिरण में होने वाले बदलावों को भी मापेगा। आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए) पेलोड सौर पवन और शक्तिशाली आयनों के साथ-साथ उनके ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे। सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SOLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से आने वाली एक्स-रे किरणों का अध्ययन करेंगे। वहीं, मैग्नेटोमीटर पेलोड को L1 बिंदु पर दो ग्रहों के बीच के चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए बनाया गया है। आदित्य-एल1 के सातों विज्ञान पेलोड की खास बात है कि ये देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। ये सभी पेलोड इसरो के विभिन्न केंद्रों के सहयोग से विकसित किए गए हैं।
चंद्रयान-3 मिशन की बड़ी सफलता के कुछ घंटों के बाद ही इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने आदित्य एल-1 मिशन को लॉन्च करने की घोषणा कर दी थी। आज ही वह दिन है जब आदित्य-एल1 मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के पीएसएलवी रॉकेट द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाएगा। मिशन का प्रक्षेपण 11 बजकर 50 मिनट पर किया जाएगा। प्रारंभ में अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद कक्षा को अधिक अण्डाकार बनाया जाएगा और बाद में प्रणोदन के जरिए अंतरिक्ष यान को L1 बिंदु की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा।जैसे ही अंतरिक्ष यान L1 की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र (SOI) से बाहर निकल जाएगा। यहां से बाहर निकलने के बाद क्रूज चरण (यान को नीचे उतारने वाला चरण) शुरू होगा और बाद में अंतरिक्ष यान को एल1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा। एजेंसी की मानें तो, लॉन्च से एल1 तक के पूरे सफर में आदित्य-एल1 को लगभग चार महीने लगेंगे।

सूर्य निकटतम तारा है और इसलिए अन्य तारों की तुलना में इसका अधिक विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है।  इसरो के मुताबिक, सूर्य का अध्ययन करके हम अपनी आकाशगंगा के तारों के साथ-साथ कई अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ जान सकते हैं। सूर्य एक अत्यंत गतिशील तारा है जो हम जो देखते हैं उससे कहीं अधिक फैला हुआ है। इसमें कई विस्फोटकारी घटनाएं होती हैं इसके साथ ही सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा भी छोड़ता है।

यदि ऐसी विस्फोटक सौर घटना पृथ्वी की ओर भेजी जाती है तो यह पृथ्वी के नजदीकी अंतरिक्ष वातावरण में कई प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकती है। कई अंतरिक्ष यान और संचार प्रणालियां ऐसी समस्याओं का शिकार बन चुकी हैं। लिहाजा पहले से ही सुधारात्मक उपाय करने के लिए ऐसी घटनाओं की प्रारंभिक चेतावनी अहम है।

इनके अलावा यदि कोई अंतरिक्ष यात्री सीधे ऐसी विस्फोटक घटनाओं के संपर्क में आता है तो वह जोखिम में पड़ सकता है। सूर्य पर कई तापीय और चुंबकीय घटनाएं घटती हैं जो प्रचंड प्रकृति की होती हैं। इस प्रकार सूर्य उन घटनाओं को समझने के लिए एक अच्छी प्राकृतिक प्रयोगशाला भी प्रदान करता है जिनका सीधे प्रयोगशाला में अध्ययन नहीं किया जा सकता है।

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