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Air Pollution: पिछले साल के मुकाबले बेहद साफ रहा अक्‍टूबर, लेकिन प्रदूषण का खतरा बरकरार

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नई दिल्‍ली. भारत के कई राज्‍यों में इस समय वायु प्रदूषण (Air Pollution) पिछले साल की तुलना में कम देखने को मिल रहा है. अक्‍टूबर 2020 की तुलना में अक्‍टूबर 2021 (October Air Pollution) 25 फीसदी अधिक साफ रहा है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रदूषण (Pollution) इस साल परेशान नहीं करेगा. क्‍योंकि प्रदूषण के स्‍तर में अक्‍टूबर के अंतिम हफ्ते से बढ़ोतरी हो रही है.

प्रदूषक तत्‍व पीएम 2.5 के मामले में अक्टूबर 2021 अधिकांश राज्यों में अक्टूबर 2020 की तुलना में बेहतर वायु गुणवत्ता वाला महीना था. यह विशेष रूप से उत्तर भारत के लिए अच्‍छा रहा है. अगर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में वायु गुणवत्ता देखी जाए तो अक्टूबर पिछले साल की तुलना में कम से कम 25% स्वच्छ रहा. इन इलाकों में सामान्‍य रूप से पराली जलाने से प्रदूषण होता था.

निश्चित रूप से पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र के कुछ राज्यों में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि देखी गई. हालांकि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि दक्षिणी और पूर्वी राज्यों में हवा की गुणवत्ता आमतौर पर उत्तरी मैदानी इलाकों की तुलना में काफी बेहतर है. उदाहरण के लिए ओडिशा में अक्टूबर 2021 और अक्टूबर 2020 के बीच पीएम 2.5 कंसंट्रेशन में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई. हालांकि अक्टूबर 2021 में इसका औसत पीएम 2.5 स्तर 37 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो दिल्ली की तुलना में बहुत कम है. दिल्‍ली में अक्टूबर 2021 और अक्टूबर 2020 के बीच पीएम 2.5 के स्तर में 43% की गिरावट आई है, लेकिन वहां अभी भी औसतन 72 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थे.

अगर प्रदूषकों का उत्सर्जन कम नहीं होता है, तो भी मौसम हवा की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है. यह बारिश के कारण हो सकता है, जो प्रदूषकों को कम कर देती है. या उच्च तापमान या हवा की स्थिति भी ऐसा कर सकते हैं, जो प्रदूषकों को जमीन के करीब जमा होने से रोकती है. इन कारकों ने मिलकर उत्तरी राज्यों में इस अक्टूबर में वायु गुणवत्ता में सुधार करने में मदद की.

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जिन छह राज्यों में हवा की गुणवत्ता खराब हुई है, उनमें से चार  असम, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलंगाना हैं. इनमें अक्टूबर 2021 में बारिश अक्टूबर 2020 की तुलना में 29% से 65% कम हुई है. पश्चिम बंगाल और केरल में जहां बारिश अधिक थी और खेतों में आग कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, वहां अधिकतम तापमान में कमी आई है और शायद हवा की गुणवत्ता बिगड़ना जारी है.

हर बार अक्‍टूबर में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं अधिक होती है. लेकिन इस बार यह पहले के मुकाबले कम रहीं. 1 अक्‍टूबर से लेकर 30 अक्‍टूबर तक ऐसी कुल 14822 घटनाएं हुई. उपग्रह डेटा की उपलब्‍धता से लेकर अब तक यह आंकड़ा 2012 के बाद से सबसे कम है. इससे पहले 2018 में अक्‍टूबर में 18512 ऐसी घटनाएं दर्ज थीं. 31 अक्टूबर को यह स्थिति अचानक बदल गई. उस दिन 3,140 ऐसी पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हईं.

वहीं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान एजेंसी ‘सफर’ ने कहा है कि दिवाली के दो दिन बाद यानी छह नवंबर तक दिल्ली के ‘पीएम 2.5’ प्रदूषण में 38 प्रतिशत तक हिस्सेदारी पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की हो सकती है. सफर के संस्थापक परियोजना निदेशक गुफरान बेग ने कहा कि अक्टूबर में रिकॉर्ड बारिश और हवा की अनुकूल दिशा के कारण इस सीजन में अब तक दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान कम रहा है. हालांकि छह नवंबर तक इसके बढ़कर 38 फीसदी तक हो जाने का अनुमान है क्योंकि दिवाली के बाद हवा की दिशा उत्तर-पश्चिम की ओर बदलने की उम्मीद है.

पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से उठने वाला धुआं उत्तर-पश्चिमी हवाओं के कारण राष्ट्रीय राजधानी की ओर आ जाता है. पिछले साल, पांच नवंबर को दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत तक पहुंच गई थी. 2019 में, एक नवंबर को यह हिस्सेदारी 44 प्रतिशत तक थी.

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