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अमेरिका और यूरोप सावधान- विंटर इज कमिंग

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द गेम ऑफ थ्रोन्स वेब सीरिज में एक संवाद है जो पूरे आठ सीजन तक चलता है और सीरीज की कहानी का लब्बोलुआब समझाता है. बताता है कि मौसम के बदलने से किस तरह राजनीति और सत्ता बदल जाती है. ये संवाद है ‘विंटर इज कमिंग’. इस बार ये संवाद वैश्विक राजनीति में हकीकत में बदल सकता है. अगर विशेषज्ञ का अनुमान सही रहा तो इस बार की सर्दी बेहद कठोर हो सकती है, ऐसे में हो सकता है कई अमेरिका और यूरोप में गरीब और मध्यमवर्गीय लोग अपने घरों को गर्म भी नहीं रख पाएं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ऊर्जा के क्षेत्र में हलचल मची हुई है. प्राकृतिक गैस और कोयले के दाम यूरोप और एशिया में अपनी रिकॉर्ड बढ़त पर हैं.

अमेरिका में तेल के दामों ने पिछले सात सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है वहीं गैसोलिन के दाम पिछले एक साल से 1 डॉलर प्रति गैलन से हिला नहीं है. लंदन में रहने वाले बाजार के जानकार बिल ब्लेन ने अपने फाइनेंशियल न्यूजलैटर में लिखा है कि, इस बार लोग ठंड से मरने वाले हैं क्योंकि जिस तरह से ऊर्जा के दाम बढ़ रहे हैं, इसका खामियाजा हमेशा की तरह गरीब तबका ही उठाएगा, समाज में मौजूद आर्थिक खाई और साफ तरीके से उजागर हो जाएगी, जब समाज के गरीब तबके को दो चीजों में से एक का चुनाव करना होगा, पेट के लिए ऊर्जा या सर्दी से बचने के लिए ऊर्जा. इस बार सर्दियों में अमेरिका अपने घुटनों पर आकर ऊर्जा की भीख मांग रहा होगा, फिर वो उसे जहां कहीं से मिल जाए. यूरोप भी अच्छी खासी दिक्कत मे होगा. मध्यपूर्व जो कुछ भी कर सकता है इसके लिए दाम मांगेगा और चूंकि क्षमता सीमित हैं और व्लादिमिर पुतिन इंतजार कर सकते हैं… इसलिए हो सकता है वो यूरोप के तमाम शीर्ष नेताओं को निजी तौर पर अपनी बात ऱकने के लिए बुलाएं और उनसे पूछे कि आखिर उनके देश के लिए के लिए खासतौर पर गैस लाइन को क्यों खोला जाए ?

ये सब कुछ अच्छे और बुरे के बीच फंसा मामला है. जहां अच्छी खबर ये है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए राजी हो गई हैं, जिसमें वो ईंधन शामिल है जो पर्यावरण को दूषित कर रहा है, वो बात और है कि इसी कोयले से घर गर्म होंगे और ऊर्जा उद्योग चल रहे हैं. बुरी खबर ये है कि ज्यादातर देश ये काम बगैर किसी तालमेल के कर रहे हैं. और जब तक आपके पास वैकल्पिक ऊर्जा जैसे पवन, सोलार या हाइड्रो की व्यवस्था नहीं होती है, और आप चाहते हैं कि हरित ऊर्जा की तरफ कदम बढाया जाए तो ऐसे में सबसे अच्छा विकल्प है प्राकृतिक गैस. जिससे कोयले के मुकाबले आधी कार्बन डाय ऑक्साईड ( हालांकि इसके निकालने की प्रक्रिया में भी मीथेन गैस के निकलने का डर होता है) उत्सर्जित होती है. लेकिन दुर्भाग्य से यूरोपीय देशों या अमेरिका के पास प्राकृतिक गैसों के स्रोत नहीं है. ऐसे में छड़ी रूस के हाथों में आ जाती है, जो यूरोपियन संघ को सबसे बड़ा पाइपलाइन से गैस देने वाला देश है. इसलिए अब दाम और पुतिन के भाव आसमान छू रहे हैं.

ब्लूमबर्ग बिजनेसवीक में प्राकृतिक गैस पर प्रकाशित खबर के मुताबिक यूरोप में गैस भंडारण का स्तर इस साल एतिहासिक स्तर पर कम है. रूस और नॉर्वे से आने वाला पाइपलाइन का प्रवाह सीमित है. इस पर चिंता की बात ये भी है कि मौसम के शांत रहने से हवा से चलने वाले टरबाइन भी धीमे पड़ गए हैं जिससे ऊर्जा उत्पादन में कमी आई है. और यूरोप के जर्जर हो रहे न्यूक्लियर प्लांट को धीरे धीरे हटाया जा रहा है. इसमें कोई हैरानी नहीं है कि यूरोप में गैस के दामों में पिछले एक साल में 500 फीसद वृद्धि हुई है. लेकिन इस मुश्किल में सिर्फ यूरोप नहीं है, इस ऊर्जा की कमी की वजह से चीन में सिरेमिक, अल्यूमिनियम, ग्लास और सीमेंट की आपूर्ति पर भी असर डाला है. वहीं ब्राजील जहां बिजली के बिलों ने लोगों को हैरान कर रखा है क्योंकि नदी में पानी के बहाव की कमी की वजह से हाइड्रोपॉवर उत्पादन नहीं कर पा रहे है. महामारी के चलते सप्लाइ चैन पर असर पड़ने से कोयला नहीं मिल पा रहा है जिसने स्थिति को बदतर बना दिया है.

लेकिन आखिर ये बुरी खबर इतनी बुरी कैसे बन गई
सबसे पहले तो कोविड पर इसका दोष म़ढ़ा गया जिसने बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी डगमगा दिया और सभी एक बड़ी आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहे हैं. इसकी वजह से जहां कमोडिटी से लेकर ऑइल, गैस के दामों पर असर पड़ा, वहीं बैंक ने भी नई प्राकृतिक गैस क्षमता और क्रूड कुओं पर निवेश करने से इंकार कर दिया है, हालांकि इसे पहले ही सात साल के बाद घटाना शुरू कर दिया गया था क्योंकि इससे रिटर्न अच्छा नहीं था.

अमेरिका के पास इतना ऑइल और प्राकृतिक गैस है कि वो अपनी ज़रूरत पूरी कर सकता है लेकिन जहां तक दूसरों को निर्यात करने की बात है तो वो सीमित है. खासकर जब यूरोप और एशिया में स्वच्छ ऊर्जा के लिए बनाए गए नए मानकों को समाज और शासन पूरा करने की भरसक कोशिश में लगा है, इसलिए वो प्राकृतिक गैस के आयात के लिए बेकरार है.

यहां ये बात ध्यान देने की है कि स्वच्छ ऊर्जा के स्तर को पाने के लिए हमें केवल पवन, सोलार या हाइड्रो की ज़रूरत नहीं है, बल्कि ये समझने की भी ज़रूरत है कि बड़े उद्योंग जो कार्बन टैक्स दे रहे हैं, परमाणु ऊर्जा और प्राकृतिक गैस इसमें एक सेतु की तरह काम करते हैं. अगर हम बिना सोचे समझे, कोई तालमेल बैठाए, बस विरोध करने पर उतारू हो जाएंगे तो उससे व्यवस्था का डगमगाना निश्चित है. वैसे भी वैज्ञानिकों का कहना है कि गैर कार्बन उत्सर्जन वाले ईंधन जो लुप्त हो रहे हैं, उनको जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी पहलुओं के प्रबंधन के लिए बचा कर रखना जरूरी है. लेकिन अक्सर हमारी प्रतिक्रिया त्वरित और बगैर सामंजस्य की होती है. मसलन फुकिशिमा में परमाणू दुर्घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप जर्मनी ने 2011 में अपने सभी परमाणु ऊर्जा को 2022 तक उत्पादन के लिए बंद कर दिया, 2000 तक इन उर्जा स्टेशनों से 29.5 फीसद जर्मनी को ऊर्जा मिलती थी. इन सभी को पवन, सोलार, हायड्रो और प्राकृतिक गैस से बदल दिया गया है और ये सब काफी नहीं है. वहीं ईरान के साथ डोनाल्ड ट्रंप के दौर में जो परमाणु सौदा रद्द हुआ था, अमेरिका उसे फिर से बहाल करने में लगा हुआ है.

वहीं अमेरिका को ये डर भी सता रहा है कि ईरान न्यूक्लियर बम बनाने में लगा हुआ है. और इजराइल और अमेरिका कसम खा कर बैठे हैं कि वो ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे. अगर कहीं अमेरिका या इजराइल इरान के परमाणु कार्यक्रम को हमला करके बीच में रोक देता है तो यह तय हो कि उनकी सर्दी 1973 के बाद सबसे बुरी बीतेगी, क्योंकि हो सकता है कि ईरान अमेरिका या पश्चिमी ऑइल टेंकर पर हमला कर दे जो फारस की खाड़ी में हैं, जहां कतर दुनिया का सबसे बड़ा तरल प्राकृतिक गैस का निर्यातक मौजूद है. जिस तरह से तेल के दाम आसमान छू रहे हैं और ऊर्जा संकट खड़ा हो गया है ऐसे में इरान को एक नया फायदा मिल गया है, हम पर हमला किया तो हम दुनिया को दीवालिया कर देंगे. बाकी देखना होगा कि सर्दी कितनी कठोर साबित होती है..तब तक बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को सतर्क रहना होगा क्योंकि विंटर इस कमिंग.

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