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Are green crackers healthy: आपकी सेहत के लिए कितने सुरक्षित हैं ग्रीन पटाखे? जानिए डॉक्टर की राय

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Are green crackers healthy? ग्रीन पटाखों का इजाद करने वाली संस्‍था सीएसआईआर – नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्‍टीट्यूट का दावा है कि उनके द्वारा तैयार किए गए इकोफ्रेंडली पटाखे वातावरण में 30 फीसदी तक कम प्रदूषण फैलाते हैं. इतना ही नहीं, दावा यह भी है कि ये ग्रीन पटाखे सभी उम्र के लोगों के स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करने वाले हैं.

इंस्‍टीट्यूट के इस दावों को देखते हुए कई राज्‍यों की सरकारों ने इसे सीमित समयावधि में चलाने की भी इजाजत दे दी हैं. लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि वाकई ये ग्रीन पटाखे आपकी सेहत के लिए सुरक्षित हैं या आपको किस हद तक नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने बात की इंदप्रस्‍थ अपोलो हॉस्पिटल में रेस्पिरेटरी मेडिसिन एक्‍सपर्ट डॉ. राजेश चावला से.

आपको में रेस्पिरेटरी मेडिसिन एक्‍सपर्ट डॉ. राजेश चावला की राय से अवगत कराए, उससे पहले चलते हैं ग्रीन पटाखों को लेकर किए दावों पर. सीएसआईआर – नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ने इन ग्रीन पटाखों को लेकर दो प्रमुख उपलब्धियों का जिक्र किया है. पहली उपलब्धि है ‘स्टार जेड’. स्‍टार जेड रोशनी वाले पटाखे (Light-Emitting Cracker) हैं.

इन पटाखों में नए फार्मूले में 32% पोटेशियम नाइट्रेट, 40% एल्यूमीनियम पाउडर, 11% एल्यूमीनियम चिप्स और 17% अन्‍य तत्‍वों को शामिल किया गया है. यह नया फार्मूले की मदद से PM10 और PM2.5 को 30% तक लाया जा सकता है. वहीं, दूसरी उपलब्धि का नाम है ‘स्‍वास’ (SWAS). स्‍वास तेज आवाज पटाखे (Sound Emitting Cracker) हैं.

‘स्‍वास’ (SWAS) में 72% प्रोपराइटरी एडिटिव के अलावा 16% पोटेशियम नाइट्रेट ऑक्सीडाइज़र, 9% एल्यूमीनियम पाउडर और 3% सल्फर का प्रयोग किया गया है. यह फार्मूला भी PM10 और PM2.5 को 30% तक कम करने में मदद करता है. सीएसआईआर – नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्‍टीट्यूट का दावा है कि रोशनी वाले पटाखों में केमिकल के इस्‍तेमाल को न केवल कम किया गया है, बल्कि बेरियम नाइट्रेट की जगहर पोटेशियम नाइट्रेट और स्ट्रोंटियम नाइट्रेट का इस्‍तेमाल किया गया है. इंस्‍टीट्यूट का दावा है कि उनके द्वारा इजाद किए गए पटाखे न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि बुजुर्गों एवं बच्‍चों की सेहत के लिहाज से भी सुरक्षित हैं.

वहीं, इन ग्रीन पटाखों को लेकर रेस्पिरेटरी एक्‍सपर्ट डॉ. राजेश चावला का कहना है कि पटाखों के निर्माण में आरसेनिक, मरकरी, लीथियम, लेड और बेरियम के इस्‍तेमाल पर प्रतिबंध लगने के बाद दो तरह के पटाखों का निर्माण शुरू हुआ. जिसमें पहले है जो बेरियम के बगैर बन रहे हैं और दूसरे हैं बेरियम नाइट्रेट के साथ बनने वाले पटाखे. बेरियम नाइट्रेट वाले पटाखे वही हैं, जिनमें आप हरे रंग का धुआं निकलता हुआ देखते हैं.

इन पटाखों को ही ग्रीन पटाखों का नाम दिया जा रहा है. उन्‍होंने बताया कि इन पटाखों से निकलने वाला धुआं और अन्‍य तत्‍व अभी भी हानिकारक हैं. इन पटाखों से निकलने वाले बेरियम नाइट्रेट के तत्‍त फेफड़ों को खास तौर पर नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसकी वजह से लोगों को गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं.

डॉ. राजेश चावला का कहना है कि बीते डेढ़ साल-दो साल से हम देश में कोराना महामारी का कहर देख रहे हैं. इस महामारी की चपेट में आने वाले ज्‍यादातर लोगों के फेफड़े किसी न किसी तरह से प्रभावित हुए हैं. लिहाजा, इन लोगों को किसी भी तरह के पटाखों से खास तौर पर दूर रहना चाहिए. भले ही वे सामान्‍य पटाखे हों या फिर ग्रीन पटाखे.

इन सभी पटाखों से निकलने वाले तत्‍व उनके फेफड़ों को बीमार करने वाले हैं. वहीं, यदि आप बीते दौर में कोरोना वायरस की चपेट में आने से बच भी गए हैं, तब भी आपको अपने फेफड़ों को जोखिम में डालना समझदारी नहीं है. इसके अलावा, बुजुर्गों और बच्‍चों को खासतौर पर इन पटाखों से दूर रहना चाहिए.  

डॉ. राजेश चावला के अनुसार, मौजूदा दौर में आप दिल्‍ली-नोएडा-गाजियाबाद जैसे शहरों की बात करें, जहां पर पहले ही प्रदूषण का स्‍तर पहले ही सामान्‍य से कई गुणा अधिक होता है, वहां पर प्रदूषण स्‍तर पर एक फीसदी की बढ़ोत्‍तरी भी मायने रखी है. उन्‍होंने कहा कि मेरी राय में अब लोगों को यह तय करना होगा कि प्राथमिकता उनकी सेहत है या फिर मनोरंजन. यदि उन्‍हें अपनी सेहत की फिक्र है तो किसी भी तरह के पटाखों से उन्‍हें परहेज करना चाहिए.

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