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Army Heroes: पाक सेना के मजबूत किले को अकेले ध्‍वस्‍त करने वाले परमवीर एक्‍का की आखिरी कहानी…

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नई दिल्‍ली. भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 का युद्ध छिड़ चुका था. भारतीय सेना के 32 गार्ड्स की अल्‍फा और ब्रावो कंपनी को मेजर ओपी कोहली के नेतृत्‍व में गंगासागर रेलवे स्‍टेशन पर कब्‍जा करने का आदेश मिला था. पाकिस्‍तानी सेना ने गंगासागर रेलवे स्‍टेशन को न केवल एक मजबूत किले में तब्‍दील दिया था, बल्कि इस किले की सुरक्षा के लिए चारों तरफ मजबूत बंकर बना रखे थे. स्‍टेशन के चारों तरफ का दलदली इलाका दुश्‍मन के रक्षाकवच का काम कर रहा था. इन तमाम अड़चनों के बीच अब स्‍टेशन तक पहुंचने का अब  सिर्फ एक ही रास्‍ता रह बच गया था और वह था रेलवे ट्रैक.

चूंकि, रेलवे ट्रैक पर दुश्‍मन सेना के सैनिकों को चलते हुए देखा गया था, लिहाजा ट्रैक पर बारूदी सुरंगे बिछे होने की संभावना भी शून्‍य के बराबर थी. योजना के तहत, 32गार्ड्स के जवानों ने रात करीब 2 बजे गंगा सागर रेलवे स्‍टेशन की तरफ बढ़ना शुरू किया. लांस नायक अलबर्ट एक्का और गुलाब सिंह के नेतृत्‍व में अल्‍फा कंपनी ट्रैक की दाई तरफ और ब्रोवो कंपनी ट्रैक के बाईं तरह चल रही थीं. भारतीय सेना के ये जाबांज दुश्‍मन के बेहद करीब थे, तभी लांस नायक गुलाब सिंह का पैर दुश्‍मन द्वारा बिछाए गए तार पर पड़ गया. तार परपैरपड़ते ही चारों तरफ धमाके के साथ चौतरफा तेज रोशनी फैल गई.

इसी रोशनी में अलबर्ट एक्का ने देखा कि वह दुश्‍मन के एक बंकर से महज 40 गज की दूरी पर हैं. वे बिना देरी किए दुश्‍मन पर टूट पड़े और अपने संगीन से उसे मौत के घाट के उतार दिया.  उस बंकर के अंदर एक लाइट मशीनगन और एक आरसीएल गन केसाथदुश्‍मनसेना के चार जवान थे. जाबांज अलबर्ट एक्का ने एक-एक कर चारों दुश्‍मन खत्‍म कर बंकर को अपनी कब्‍जे में ले लिया. हालांकि, इस लड़ाई के दौरान एक गोली लांस नायक अलबर्ट एक्का के बाजू में आ धंसी. बावजूद इसके, अलबर्ट एक्का रुके नहीं, दुश्‍मन से मोर्चा लेने के लिए लगातार आगे बढ़ते रहे.

दुश्‍मन ने भारतीय सेना पर की गो‍लियों की बौछार
तार में पैर पड़ने से हुए धमाकों और बंकर पर हुई भीषण लड़ाई के शोर की आवाज दुश्‍मन के दूसरे बंकरों और गंगासागर रेलवे स्‍टेशन तक पहुंच चुकी थी और दुश्‍मन ने भारती सेना के जाबांजों पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार शुरू कर दी थी. जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना के जाबांजों ने फायरिंग शुरू की. इस बीच, मेजर कोहली ने रणनीति बदलते हुए एक कंपनी को लक्ष्य की तरफ बढ़ने और दूसरी कंपनी को तालाब के चारों तरफ बने बंकरों को अपने कब्‍जे में लेने का आदेश दिया. पहली कंपनी बिना देरी किए दुश्‍मन की गोलियों का जवाब देते हुए आगे बढ़ने लगी.

अलबर्ट एक्का की गर्दन में लगी गोली और फिर…
उसी दौरान, मेजर कोहली के साथ आगे बढ़ रहे लांस नायक अलबर्ट एक्का के गर्दन में दुश्‍मन की एक गोली धंस जाती है. अलबर्ट एक्का लड़खड़ाकर गिरते है और कुछ ही पलों में खुद को संभाल कर दुश्‍मन की तरफ बढ़ चलते हैं. अलबर्ट एक्का अबतक उस रेलवे सिग्‍नल बिल्डिंग तक पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं, जहां से दुश्‍मन की एमएमजी से लगातार गोलियों की बरसात कर रही थी. अपने साथियों की रक्षा के साथ लक्ष्य की तरफ बढ़ती भारतीय सेना का रास्‍ता साफ करने के लिए इस एमएमजी को खामोश करना अलबर्ट एक्का केलिए बेहद जरूरी हो गया था.

जख्‍मी शेर की तरह दुश्‍मन पर टूटे अलबर्ट एक्का
दुश्‍मन की एमएमजी को खामोश करने का लक्षय लेकर अलबर्ट एक्का रेंगते हुए आगे बढ़ते है और दो मंजिला रेलवे सिग्‍नल बिल्डिंग तक पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं. तभी उनकी निगार इस इमारत की दीवार के एक बड़े छेद पर जाती है, जहां से दुश्‍मन पर हमला करना संभव था. अलबर्ट एक्का ने अपने बेल्‍ट से एक हैंड ग्रेनेड निकाला और उसकी पिन निकालकर उस छेड से अंदर फेंक दिया. कुछ ही सेकेंड के बाद एक जोरदार धमाका हुआ और एक दुश्‍मन उछल कर दीवार से टकराया और वहीं पर ढेर हो गया.  इस बीच, ग्रेनेड से निकले कुछ छर्रे अलबर्ट एक्का के पेट में भी जा घुसे.

अपनी संगीन से दुश्‍मन का किया खात्‍मा और..
बुरी तरह से जख्‍मी हो चुके अलबर्ट एक्का की हिम्‍मत अभी भी उनके साथ थी. उन्‍होंने अपनी राइफल को कंधे में टांगा और उसकी संगीन हाथ में ली और लोहे की सीढि़यां चढ़कर दुश्‍मन तक पहुंचने में कामयाब हो गए. उन्‍होंने पहले दुश्‍मन को ललकारा और जैसे ही दुश्‍मन पलटा, अलबर्ट एक्का ने अपनी संगीन उसके सीने में घोंप दी. पूरी ताकर लगाकर सीने से संगीन निकाली और फिर पेट में घोंप दी. वह तब तक दुश्‍मन के शरीर में संगीन घोंपते रहे, जब तक उसके प्राण नहीं निकल गए. अलबर्ट एक्का ने रेलवे सिग्‍नल बिल्डिंग में मौजूद सभी दुश्‍मनों का खात्‍मा कर दुश्‍मन की एमएमजी को खामोश कर दिया.

रणभूमि में प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दे गए अलबर्ट
रेलवे सिग्‍नल बि‍ल्डिंग में मौजूद सभी दुश्‍मनों का खात्‍मा करने के बाद लांस नायक अलबर्ट एक्का बेहद संतोष भाव से लोहे की सीढ़ियों से उतर रहे थे और तभी उसके शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया. वे निढ़ाल होकर नीचे जमीन पर गिर पड़े और वहीं पर उन्‍होंने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दे दिया. लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने सबसे विशिष्ट वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया और सेना की सर्वोत्तम परंपराओं में सर्वोच्च बलिदान दिया, जिसके लिए उन्‍हें सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

Tags: Heroes of the Indian Army, Indian army, Indian Army Heroes, Indo-Pak War 1971



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