Exclusive Interview : T20 की तर्ज पर चुनावी क्रिकेट जीतेगी BJP, सीएम पुष्कर सिंह धामी को पूरा भरोसा
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देहरादून. उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव अगले 3 महीनों के भीतर होने जा रहे हैं. ऐसे में राज्य के 11वें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को विश्वास है कि खेलने के लिए जितने भी ओवर उन्हें मिले हैं, उनमें वो धुआंधार बल्लेबाज़ी करते हुए चुनावी क्रिकेट जीत जाएंगे. न्यूज़18 को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में धामी ने कहा कि उनको भरोसा है वोटर्स अंपायर की भूमिका में रहकर उनके कामकाज को अच्छी तरह आंकेंगे और चुनाव में जीत दिलवाएंगे. उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर सन 2000 को गठित हुए उत्तराखंड राज्य के 21वें स्थापना दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने न्यूज़18 के उत्तराखंड संपादक के साथ कई मुद्दों पर खास बातचीत की.
21 साल और 11 मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री धामी का मानना है कि पिछले दो दशक में उत्तराखंड ने कई नए क्षेत्रों में प्रगति की है. स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की गांवों को कनेक्ट करने वाली महत्वाकांक्षी योजना का राज्य को फायदा मिला. पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से भी राज्य को सौगातें मिली हैं. हाल में एम्स के सेटेलाइट हॉस्पिटल को मंजूरी मिली. बॉर्डर तक सड़क का जाल बिछ रहा है. पहाड़ों में रेल और एयर कनेक्टिविटी पर काम हो रहा है. 21 सालों में उत्तराखंड को 11 मुख्यमंत्री मिलने के सवाल पर सीएम धामी का कहना है कि यह फैसले देश काल परिस्थिति के अनुसार होते हैं. 11 में से 8 मुख्यमंत्री अकेले बीजेपी ने दिए हैं. राज्य विधानसभा में पूर्ण बहुमत होने के बावजूद बीजेपी ने पिछले 5 सालों में ही 3 मुख्यमंत्री बदले हैं. सीएम का मानना है वह इस ज़िम्मेदारी को बखूबी समझते हैं इसलिए अपने समय का पूरा इस्तेमाल राज्य के डेवलपमेंट के लिए कर रहे हैं.
उत्तराखंड को कब मिलेगी राजधानी?
21 साल पहले जब उत्तराखंड बना था, तब इसकी राजधानी को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया था. लिहाजा राजधानी का चयन आने वाली सरकारों को छोड़ दिया गया और ये मसला आज तक नहीं सुलझ पाया. बीजेपी सरकार के दौरान ही 2 साल पहले चमोली ज़िले के गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा हुई थी. तो सवाल ये है कि उत्तराखंड की असली राजधानी यानी कि परमानेंट कैपिटल है कहाँ? जब मुख्यमंत्री से इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि जो भी अंतिम फैसला होगा, लोगों की भावनाओं के अनुरूप होगा.
समय कम, काम ज्यादा
मुख्यमंत्री धामी ऐसे समय में सीएम बने, जब उनके पास काम करने के चंद ही महीने बचे हैं. यह पूछने पर कि 50 ओवर के राजनीतिक क्रिकेट मैच में 40 ओवर तो उनके सहयोगी खेल गए अब बाकी 10 और उन्हें खेलने हैं. वह किस तरह से इस प्रेशर को मैनेज कर रहे हैं? धामी कहते हैं कि वो T20 मैच की तर्ज़ पर अपनी टीम को चुनाव में जिताने के लिए धुआंधार बल्लेबाज़ी कर रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि तमाम सीनियर लीडरों के बीच ‘यंग सीएम’ बनने के बाद वो कैसे बैलेंस बना रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि वो सभी का सम्मान करते हैं और सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. वो इस बात को खारिज करते हैं कि बीजेपी के अंदर खींचतान है.
अंडर परफॉर्म विधायकों का होगा पता साफ!
बीजेपी सर्कल्स में ये चर्चा आम है कि पार्टी ऐसे विधायकों को घर बैठाने की सोच रही है, जिनके खिलाफ क्षेत्र में नाराज़गी है यानी पार्टी कई सीटिंग विधायकों के टिकट काटने पर विचार कर सकती है. इस मुद्दे से जुड़े सवाल पर मुख्यमंत्री का कहना है कि यह राष्ट्रीय नेतृत्व तय करता है कि किसे टिकट मिले. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल इस मुद्दे पर कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी.
क्या पुराने मिथ को तोड़ पाएगी बीजेपी?
उत्तराखंड जैसे-जैसे अगले विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे एक सवाल चुनावी फिज़ा में तैर रहा है कि क्या 5 साल का मिथ तोड़ पाएगी बीजेपी? दरअसल राज्य में अभी तक 4 विधानसभा चुनाव हुए हैं. विधानसभा चुनाव में कोई भी सरकार रिपीट नहीं हो पाई, तो बीजेपी क्या इस बात को समझती है? इसके जवाब में मुख्यमंत्री धामी कहते हैं कि मिथ होते ही तोड़ने के लिए हैं.
हाल में देश में कई सीटों पर उपचुनाव हुए थे, उनमें हिमाचल प्रदेश का रिजल्ट सबसे अलग रहा। वहां बीजेपी की सरकार है और 3 विधानसभा सीटें कांग्रेस को मिलीं. हिमाचल, उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य है और वहां की राजनीतिक गतिविधियों का असर उत्तराखंड में भी देखा जाता है. हालांकि मुख्यमंत्री ऐसा नहीं मानते कि सिर्फ हिमाचल का असर ही उत्तराखंड पर पड़ेगा. उनका कहना है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश भी पड़ोसी राज्य हैं. इन राज्यों में बीजेपी जीती है.
देवस्थानम बोर्ड एक्ट कहीं बीजेपी के गले तो नहीं पड़ गया?
उत्तराखंड के चार धामों समेत 51 मंदिरों को गवर्न करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में जो देवस्थानम बोर्ड एक्ट बना था, उसको लेकर काफी नाराज़गी है. ये नाराज़गी हाल ही, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र को केदारनाथ में झेलनी पड़ी. कहीं देवस्थानम बोर्ड बीजेपी के लिए बड़ा सरदर्द तो नहीं बन गया है? इस सवाल पर सीएम ने कहा कि सरकार इस मुद्दे को लेकर संजीदा है. उनका कहना है कि पूर्व राज्यसभा सांसद मनोहर कांत ध्यानी की अगुवाई में एक्सपर्ट पैनल ने रिपोर्ट दी है. इस रिपोर्ट के आधार पर पंडा पुरोहित समाज से बातचीत कर बीच का रास्ता निकाला जाएगा. गौरतलब है कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर गढ़वाल के कई क्षेत्रों में नाराज़गी का आलम है.
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