उत्तराखंड

Explainer: क्या है चार धाम प्रोजेक्ट, कितना जरूरी है देश की सुरक्षा के लिए?

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नई दिल्‍ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पिछले दिनों सुनवाई के बाद उत्‍तराखंड (Uttarakhand) के चारधाम प्रोजेक्ट (Chardham Project) पर फैसला सुरक्षित कर लिया था. अब उसने अपने फैसले में इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण संबंधी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए हरी झंडी दिखा दी है. जानते हैं कि क्या है चार धाम प्रोजेक्ट और कितना जरूरी है ये चीन से सीमा पर भारत की रक्षा संबंधी जरूरतों के लिए.

केंद्र सरकार चाहती है चारधाम हाईवे में सड़कों की चौड़ाई मौजूदा 5.5 मीटर से बढ़ाकर 10 मीटर कर दी जाए, जिससे भारत-चीन सीमा तक सेना के वाहन, साजोसामान पहुंचना सुगम हो जाए. सड़कों की स्थिति 1962 के चीन युद्ध के बाद से नहीं बदली है. ये सड़कें ऐसी हैं जिस पर दो वाहनों का आमने सामने से गुजरना बहुत मुश्किल हो जाता है. इन सड़कों का चौड़ा होना जरूरी है, हालांकि उत्तराखंड में पर्यावरण और संवेदनशील पहाड़ों को देखते हुए ये इतना आसान तो नहीं है.

अदालत ने पहले क्या कहा था
8 सितंबर 2020 को अदालत ने पर्यावरण के मद्देनजर उत्तराखंड में सड़कों के आकार-प्रकार में कोई बदलाव नहीं करने का आदेश दिया था. इसके बाद ही केंद्र सरकार को इस फैसले के खिलाफ अपील करनी पड़ी. केंद्र की याचिका को देहरादून के एक एनजीओ सिटीजंस ऑफ ग्रीन दून ने चुनौती दी थी.

इसे लेकर क्या पर्यावरण चिंताएं जाहिर की गईं थीं
ग्रीन दून एनजीओ का तर्क था कि अगर पहाड़ के रास्तों की चौड़ाई बढ़ाई गई और उसे अपग्रेड किया गया तो पहाड़ों की इकोलॉजी पर बहुत असर पड़ेगा. उसका विनाशक असर भविष्य में देखा जा सकता है, जैसा पिछले कुछ सालों में अक्सर उत्तराखंड में नजर आया है.

सड़कों की चौड़ाई को लेकर पर्यावरण कमेटी क्या मानना है
दरअसल इसे लेकर सरकार ने एक पर्यावरण कमेटी गठित की थी लेकिन उसमें ही दो अलग विचार हो गई. कमेटी के दो हिस्से बने. दोनों ने अलग रिपोर्ट दी. बड़ी रिपोर्ट ने जहां ये कहा कि सड़क बन सकती है और पर्यावरण की चिंताओं पर भी ध्यान दिया जा सकता है. वहीं विशेषज्ञों की छोटी टीम ने कहा रोड की चौड़ाई 5.5 मीटर से ज्यादा नहीं बढ़ाई जानी चाहिए. उसको यथावत ही रखना चाहिए. छोटी रिपोर्ट कहती है कि अगर सड़कों को चौड़ा करने के प्रोजेक्ट पर गए तो हिमालय के लोगों की तरह सैनिकों की जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती है. क्योंकि हिमालय से छेड़छाड़ अब किए जाने की स्थिति में नहीं है.

चार धाम परियोजना का उद्देश्य क्या है
चारधाम परियोजना का उद्देश्य सभी मौसम में पहाड़ी राज्य के चार पवित्र स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है. इस परियोजना के पूरे हो जाने के बाद हर मौसम में चार धाम की यात्रा की जा सकेगी. साथ ही इससे सेना की रसद का भारत-चीन सीमा तक पहुंचना आसान होगा. केंद्र सरकार की दलील थी कि तिब्बत में चीन के भारी सैन्य जमावड़े के मद्देनजर 1962 जैसी त्रासदी को टालने के लिए सेना को उत्तराखंड में ज्यादा चौड़ी सड़कों की जरूरत है.

मौजूदा स्थिति क्या कहती है
इस बात में कोई शक नहीं है कि चीन के साथ लगनेवाली संपूर्ण वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ राजमार्गों, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचों की दरकार है. सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले से संबंधित सुनवाई में ही सरकार ने कहा था कि हम इस स्थिति में नहीं हैं कि भारत-चीन सीमा तक अपनी मिसाइलें ले जाकर लांच कर सकें या भारी मशीनरी वहां तक पहुंचा सकें.

ये प्रोजेक्ट क्या है उसकी लागत क्या है
सरकार का चार धाम प्रोजेक्ट 900 किलोमीटर लंबा है और इसे सभी मौसमों के लिहाज से विकसित करने में करीब 12,000 करोड़ रुपए की लागत आएगी. इससे उत्तराखंड के चारों धार्मिक स्थान यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ आपस में सड़क मार्ग द्वारा जुड़ सकेंगे. अब तक ये सड़कें ऐसी हैं कि इन पर वाहनों का चलना ही मुश्किल है. पहाड़ों पर एक सामान्य सा अघोषित नियम है कि ऊपर से नीचे उतरने वाले वाहन को पहले प्राथमिकता दी जाए. हालांकि कभी कभी ऐसा करने के बीच रास्ते पर तमाम तरह के संकट और पेचिदिगियां पैदा होती हैं.

ये प्रोजेक्ट कब शुरू हुआ और इसमें क्या होना है
– इस प्रोजेक्ट की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2016 में रखी थी. इसमें यात्रा मार्ग ऋषिकेश से आरम्भ होंगे और चारों धामों तक जाएंगे. पहला रास्ता, ऋषिकेश से निकलेगा, जो धारासु नाम की जगह तक जाएगा. दूसरा धारासु से एक रास्ता यमुनोत्री और दूसरा गंगोत्री जाएगा. तीसरा, यह रास्ता भी ऋषिकेश से शुरू होगा और रुद्रप्रयाग तक जाएगा.

– रुद्रप्रयाग से एक रास्ता केदारनाथ के लिए गौरीकुंड तक निकल जाएगा.चौथा, रुद्रप्रयाग से एक रास्ता आगे बद्रीनाथ के लिए माना गांव तक जाएगा. साथ ही टनकपुर से पिथौरागढ़ के रास्ते को हाइवे में बदला जा रहा है.

– राज्य सरकार के अनुसार, इस प्रोजेक्ट के तहत 250 किलोमीटर सड़क चौड़ी हो चुकी है. 400 किलोमीटर सड़क पर काम हो रहा है, जबकि 239 किलोमीटर सड़क पर अभी काम शुरू होना है, क्योंकि पर्यावरण से जुड़ी मंजूरी नहीं दी गई है.

– पिछले दिनों भारत ने लिपुलेख में जो सड़क बनाई थी, वह भी एक तरह से इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है. वह रास्ता कैलाश मानसरोवर जाने के लिए है. लिपुलेख की रोड रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. इसके जरिए अब भारतीय सेना आसानी से चीन-नेपाल सीमा तक पहुंच जाती है.

फिलहाल सड़कों पर सेनाओं को क्या दिक्कत आ रही थी
सेना रास्तों की मौजूदा स्थिति के चलते वहां अपने भारी वाहन, मशीनरी, हथियार, मिसाइल, टैंक, सैन्य टुकड़ियां और खाद्य रसद कैसे पहुंचाए. ब्रह्मोस मिसाइल 42 फीट लंबी है और उसको ले जाने के लिए लंबे वाहन की जरूरत होगी. अगर खुदा ना खास्ता युद्ध छिड़ जाए तो आर्मी वहां बगैर हथियारों और रसद के कैसे मुकाबला करेगी. हमें ना केवल उसकी तैयारी करनी होगी बल्कि सतर्क रहना होगा.

यहां की पर्यावरणीय दिक्कतों से सरकार कैसे निपटेगी
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि वो ऐसी सड़कों का निर्माण करेगी, जो इस तरह परखकर बनाई जाएंगी कि आपदाओं को न्योता नहीं दें. सुरक्षा और सावधानियों पर पूरा ध्यान दिया जाएगा. केंद्र इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को एक विस्तृत रिपोर्ट भी सौंपी है.

आपके शहर से (देहरादून)

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Tags: Char Dham, Char Dham Highway Project, Supreme Court



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