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General Bipin Rawat Memories: बालसखा गुरुंग ने बांटी यादें, ​कोठियाल ने सुनाया म्यांमार से जुड़ा रावत का शौर्य

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देहरादून. देश के पहले सीडीएस बिपिन रावत का देहरादून से गहरा नाता रहा. स्कूल एजुकेशन, आईएमए ट्रेनिंग यहीं हुई और अपने रिटायरमेंट के बाद भी जनरल रावत देहरादून में ही रहना चाहते थे, लेकिन अब सब कुछ यादों में है. बुधवार को वायुसेना के हेलीकॉप्टर के क्रैश हो जाने के कारण दुनिया को अलविदा कह गए बिपिन रावत का नाम आते ही शोक की लहर दौड़ जाती है. इस बीच, लंबे समय तक उनके साथी रहे लेफ्टिनेंट जनरल शक्ति गुरुंग का कहना है कि हमें उनकी उपलब्धियों को सेलिब्रेट करना चाहिए. वहीं, आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरे रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल ने भी रावत के शौर्य के प्रसंग साझा किए.

गुरुंग ने पुरानी यादें साझा करते हुए बताया, जब वह और बिपिन रावत कैम्ब्रियन हॉल बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे, तब रावत क्लास 6 में आए थे और वह क्लास 10 में थे. बोर्डिंग स्कूल होने की वजह से फैमिली जैसा माहौल था और दोस्ती हुई. एक साथ खाना, पीना, नहाना, पढ़ना, सोना हुआ करता था. गुरुंग बताते हैं, ‘स्कूल के दिनों में बिपिन रावत शर्मीले स्वभाव के थे. वह फुटबॉल, बॉक्सिंग के साथ पढ़ने में भी आगे थे.’ स्कूल से दोनों एनडीए में गए और फिर स्कूल के स्टूडेंट्स की तरह जगह जगह मिलते रहे. गुरुंग ने कहा 2017 में आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत को कैम्ब्रियन हॉल के फाउंडर्स डे पर सुनना खास अनुभव था.

काश वो रिटायर होते, हम गोल्फ खेलते…
गुरुंग कहते हैं कि सीडीएस बिपिन रावत ने देश की सेना के लिए नए प्रयोग किए और उनके किए काम फौज हमेशा याद करेगी. वहीं, भावुक होकर गुरुंग ने बताया, ‘अब इंतज़ार सीडीएस के रिटायरमेंट का था, वो आते, रिटायर्ड आर्मी अफसर की सोसाइटी उनका वेलकम करती. हम एक साथ गोल्फ खेलते, साथ हंसते गाते, लेकिन ऐसा नहीं हो सका… सबको दुख है, लेकिन गर्व भी है कि हम उनके साथ रहे, 43 साल सेना में और 65 साल इस दुनिया में.

म्यांमार प्रोजेक्ट पर जब किडनैप हुए थे कोठियाल?
लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत और उत्तरकाशी के पूर्व विधायक किशन सिंह के नाती बिपिन रावत के शौर्य के किस्से कम नहीं हैं. गोरखा रेजिमेंट के इस सिपाही ने बारामुला और उरी में बड़े आतंकी ऑपेरशनों को खूब अंजाम दिया था. सेना में उनके जूनियर रहे रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल ने बताया कि म्यांमार में इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के दौरान जब उनका किडनैप हुआ था, तब रावत ने ही मध्यस्थता करते हुए दुश्मनों के चंगुल से बाहर निकलने में मदद की थी. उसके बाद उन्होंने भारत की सैन्य सुरक्षा उपलब्ध कराई थी, जिस वजह से वो प्रोजेक्ट पूरा हुआ था.

कोठियाल ने उस समय की याद भी ताज़ा की जब 2019 में रावत अपनी धर्मपत्नी के साथ गंगोत्री आये और यहां उन्होंने स्वामी सुंदरानंद आश्रम में लगभग 5 घंटे भी बिताए थे. कोठियाल ने कहा कि उत्तराखंड से जुड़े कई मुद्दों पर रावत के साथ उनकी हमेशा बातचीत होती थी.

ननिहाल में भी रह गईं यादें
तमिलनाडु के कुन्नूर में विमान हादसे में रावत और उनकी पत्नी मधुलिका की मौत का समाचार मिलने पर उनके ननिहाल यानी थाती गांव में भी दुख पसर गया. रावत दो 2019 में अपनी पत्नी मधुलिका संग थाती गांव आए थे, जहां उन्होंने वादा किया था कि रिटायरमेंट के बाद गांव के लिए काफी कुछ करेंगे. अब यादें ही रह गई हैं. न्यूज़18 संवाददाता बलबीर परमार के इनपुट के मुताबिक रावत का उत्तरकाशी जनपद से गहरा रिश्ता रहा और यहां ननिहाल होने के कारण रावत कई मौकों पर उत्तरकाशी आए. उन्होंने ग्रामीणों से कहा था कि पहाड़ों से पलायन सबसे बड़ी चिंता है और इसके लिए वह सरकारों से बात करते रहते हैं.

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