High Court Order: 24 वन गुर्जर परिवारों को बड़ी राहत, सरकार से कहा मुआवजा और जमीन दी जाए
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नैनीताल. चीफ जस्टिस कोर्ट ने सरकार को वन गुर्जरों के विस्थापन और उनके रहन-सहन के लिए दिशा निर्देश जारी करते हुए आदेश में सरकार से कहा कि कॉर्बेट पार्क के सोना नदी क्षेत्र में छूटे हुए 24 वन गुर्जरों के परिवारों को 10-10 लाख रुपये तीन माह के भीतर दिए जाएं. साथ ही, कोर्ट ने इन परिवारों को 6 माह के भीतर प्लॉट दिए जाने के आदेश भी दिए. वन गुर्जरों के सभी परिवारों को ज़मीन के मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण-पत्र छह माह में दिए जाने के आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा कि राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े परिवारों को जीवनयापन के लिए सभी ज़रूरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं.
कोर्ट ने सरकार को साफ तौर पर निर्देशित किया कि खाना, आवास, मेडिकल सुविधा, स्कूल, रोड और उनके पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था और उनके इलाज हेतु वेटनरी डॉक्टर उपलब्ध कराने जैसी मूलभूत सुविधाएं दी जाएं. कोर्ट ने राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु सरकार से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा. इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चैहान और न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई. अब इस मामले में सुनवाई के लिए कोर्ट ने अगले महीने 12 जनवरी की तारीख मुकर्रर की है.
याचिकाओं ने कौन से मुद्दे उठाए थे?
एनजीओ थिंक एक्ट राइज़िंग फाउंडेशन और हिमालयन युवा ग्रामीण समेत अन्य की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर पहले कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि वन गुर्जरों के बारे में जानकारी रखने वाले सक्षम अधिकारियों को शामिल कर दोबारा से कमेटी बनाई जाए. ताकि उनकी समस्याओं का कोर्ट को ठीक पता चल सके. सरकार ने ऐसी कमेटी बना दिए जाने की बात कोर्ट में कही थी, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने जो कमेटी गठित की, उसकी रिपोर्ट पर सरकार अमल नहीं कर रही.
कुछ ही परिवारों को 10 लाख का मुआवज़ा दिए जाने की बात कहते हुए याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो नियमावली बनाई है, वह भ्रमित करने वाली है क्योंकि उसमें मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था नहीं है. पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अधिकतर परिवारों को मुआवज़ा दे दिया है और उनके विस्थापन और मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण-पत्र की प्रक्रिया चल रही है.
याचिकाओें में कहा गया कि सरकार वन गुर्जरों को उनके परंपरागत हक हकूकों से वंचित कर रही है. वन गुर्जर पिछले 150 सालों से वनों में रह रहे हैं, जिन्हें हटाया जा रहा है. उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं. लिहाज़ा, उनको सभी अधिकार देकर विस्थापित किए जाने की मांग याचिकाओं में की गई.
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