blog

भाजपा में कांग्रेसी नेताओं का बढता महत्व

एक समय था, जब भारतीय जनता पार्टी में बाहरी लोगों के लिए कोई जगह नहीं होती थी। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद भाजपा नेताओं की नर्सरी होती थी। वहीं से नेता निकलते थे। अब भी निकलते हैं लेकिन अब भाजपा ने लैटरल एंट्री के दरवाज खुल गए हैं। जिस तरह से निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को सरकारी विभागों में लेटरल एंट्री दी जा रही है और सीधे संयुक्त सचिव बनाया जा रहा है, जो पहले आईएएस अधिकारियों के लिए ही आरक्षित थी उसी तरह भाजपा में दूसर पार्टियों के ‘विशेषज्ञ नेता’ एंट्री ले रहे हैं और सीधे मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय महासचिव आदि बन रहे हैं। राजनीति में विचारधारा के लोप का यह प्रत्यक्ष असर है।

बहरहाल, यह प्रक्रिया पिछले कई बरसों से चल रही है। अभी गोवा की घटना ने इस ओर फिर से ध्यान दिलाया है। गोवा में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार है। 40 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा के अपने 28 विधायक हैं और इसके अलावा महाराष्ट्रवादी गोमांतक  पार्टी के दो और तीन निर्दलीय विधायकों का भी समर्थक है। इसका मतलब है कि विपक्ष में सिर्फ सात विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के तीन हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 11 विधायक जीते थे, जिसमें से आठ पाला बदल कर भाजपा में चले गए हैं। पहले भी भाजपा के जीते हुए 20 लोग में अनेक ऐसे हैं, जो कांग्रेस से आए थे और पार्टी ने टिकट दिया था।

अब भाजपा ने अपने एक पुराने और प्रतिबद्ध नेता नीलेश कबराल को मंत्री पद से हटा दिया है और उनकी जगह कांग्रेस से आए अलेक्सो सिक्वेरा को मंत्री बनाया है। कबराल ने कहा कि उनको पार्टी के लिए बलिदान देने को कहा गया। वे वरिष्ठ नेता हैं और प्रमोद सावंत की सरकार में पीडब्लुडी मंत्री थी। उनके हटाने के बाद मुख्यमंत्री सांवत ने पीडब्लुड मंत्रालय तो अपने पास ही रखा लेकिन कांग्रेस से आए सिक्वेरा को चार मंत्रालय दिए। सवाल है कि क्या भाजपा को भी अपने विधायक टूटने और सरकार गिर जाने का खतरा सता रहा था या अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व कांग्रेसी नेताओं को खुश करने की कोशिश हो रही है ताकि राज्य की लोकसभा की दोनों सीटें जीतने में दिक्कत न आए।

बहरहाल, गोवा तो ताजा मामला है लेकिन पहले से ही भाजपा इस मामले में बड़ी उदार हो गई है। उसे विचारधारा की प्रतिबद्धता से ज्यादा ऐसे नेताओं की जरूरत है, जो वोट दिला सकें और चुनाव जीता सकें। तभी कांग्रेस के हेमंत बिस्वा सरमा, माणिक साहा, पेमा खांडू आदि भाजपा के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। बसवराज बोम्मई भी हाल तक मुख्यमंत्री थे। आंध्र प्रदेश से लेकर बिहार तक कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष दूसरी पार्टियों से आए हैं। नड्डा की टीम में राष्ट्रीय महासचिव और उपाध्यक्ष भी दूसरी पार्टियों के थे। भाजपा के ज्यादातर प्रवक्ता, जो दिन भर टीवी पर दिखाए देते हैं वे तो दूसरी पार्टियों से ही आए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *