India-China Border : 1962 से बेदखल ग्रामीण जाना चाहते हैं अपने गांव, उत्तराखंड पुलिस बना रही विकास मेलों की रिपोर्ट
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देहरादून. 1962 में हुए भारत चीन युद्ध के बाद उत्तरकाशी के दो गांवों नीलांग और जादू के ग्रामीणों को पैतृक गांवों से दूर रखा गया था. तबसे आलम यह है कि आज तक इन लोगों को उनके गांव जाने की इजाज़त नहीं है. केवल पूजा के लिए इन ग्रामीणों को जाने की अनुमति दी जाती है, लेकिन उसके लिए भी इन्हें पहले से आवेदन देकर परमिशन लेनी पड़ती है. अब उम्मीद जगी है कि ये ग्रामीण अपने बंजर पड़े पैतृक गांवों में जाएंगे और किसी तरह ये गांव आबाद हो सकेंगे. जानिए कैसे.
दरअसल, बीते साल हुई देश की डीजीपी मीट में एक योजना तैयार हुई थी, जिसमें पीएम ने देश के इंडो-चाइना से जुड़े इलाकों के गांवों में विकास मेले लगाने के निर्देश पुलिस को दिए थे. इन मेलों का मकसद बॉर्डर इलाकों के गांवों का विकास करना और इनकी समस्याओं को हर स्तर पर दूर करना रखा गया था ताकि आने वाले समय में ये ग्रामीण एक प्रहरी के रूप में भी काम करें. अब उत्तराखंड में बरसों बाद अपने पैतृक गांव पहुंचकर ये लोग आईटीबीपी के बाद सेकंड प्रहरी की तरह काम करते हुए आबाद हो सकते हैं.
भारत चीन बॉर्डर से जुड़े गांवों में उत्तराखंड पुलिस विकास मेलों का आयोजन कर रिपोर्ट तैयार कर रही है.
क्यों हुए विकास मेले और कैसे?
डीजीपी मीट के निर्देशों के अनुसार इन ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर सभी राज्यों को एक रिपोर्ट तैयार कर केंद्र को सौंपनी थी, जिससे राज्य और केंद्र मिलकर काम कर सकें. अब राज्य के इंडो-चाइना बॉर्डर से जुड़े तीन ज़िलों में उत्तराखंड पुलिस ने विकास मेलों का आयोजन किया, जिसमें पिथौरागढ़ के गुंजी, चमोली के मलारी और उत्तरकाशी के हर्षिल में मेले लगाए गए.
इन मेलों में उत्तरकाशी बॉर्डर से जुड़े नीलांग और जादू के ग्रामीणों समेत स्थानीय लोगों की पहली मांग यही रही कि उनको अपने पैतृक गांव तक जाने की परमिशन मिले, जिससे वो बॉर्डर इलाकों में सेकंड प्रहरियों की तरह काम कर सकें. गढ़वाल के डीआईजी केएस नगन्याल का कहना है कि सभी ज़िलों में विकास मेले लगवाए गए. इनसे स्थानीय लोगों में उत्साह भी दिखा और उन्होंने अपनी कुछ समस्याएं भी पुलिस के सामने रखीं. नगन्याल के मुताबिक डिटेल रिपोर्ट बना कर आने वाली डीजीपी मीट में रखी जाएगी.
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