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उम्मीद है न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को शीघ्र मिलेगी मंजूरी : चीफ जस्टिस

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नई दिल्ली: देश के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण (Chief Justice NV Raman) ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों की शीघ्र मंजूरी के लिए शनिवार को जोर देते हुए कहा कि वह न्याय तक समान पहुंच की सुविधा और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार का ‘सहयोग एवं समर्थन’ चाहते हैं.

प्रधान न्यायाधीश के रूप में 24 अप्रैल को कार्यभार संभालने के बाद उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सक्रिय रूप से नामों की सिफारिश कर रहे न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि कॉलेजियम ने मई से अब तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए 106 नामों की सिफारिश की है और उन्हें मंजूरी मिलने से ‘‘कुछ हद तक’’ लंबित मामलों से निपटाया जा सकेगा.

प्रधान न्यायाधीश ने यहां एक कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू के आश्वासन का भी जिक्र किया और कहा, ‘‘सरकार ने उनमें (न्यायाधीशों के लिए नाम में) से कुछ को मंजूरी दे दी है और कानून मंत्री ने आश्वासन दिया है कि बाकी चीजें एक या दो दिनों में आ जाएंगी. मैं इन रिक्तियों को दूर करने और लोगों को न्याय दिलाने के लिए सरकार को धन्यवाद देता हूं.’’

कोविड-19 ने कई समस्याओं को उजागर किया
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने न्यायपालिका में ‘‘कुछ गहरी समस्याओं को उजागर किया है.’’ उन्होंने विशेष रूप से कमजोर वर्गों के लिए न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया.

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘मेरे सहयोगी न्यायाधीशों और मैंने वादियों को शीघ्र न्याय दिलाने में सक्षम बनाने का प्रयास किया है. मैं यह बताना चाहता हूं कि मई के बाद से मेरी टीम ने अब तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में 106 न्यायाधीशों और नौ नए मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश की है.’’

मुख्य न्यायाधीश के लिए नौ नामों को मिली मंजूरी
न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘सरकार ने अब तक 106 न्यायाधीशों में से सात और मुख्य न्यायाधीशों के लिए नौ में से एक नाम को मंजूरी दी है. मुझे उम्मीद है कि सरकार बाकी नामों को जल्द ही मंजूरी देगी. इन नियुक्तियों से कुछ हद तक लंबित मामलों से निपटा जा सकेगा. मैं न्याय तक पहुंच और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार का सहयोग और समर्थन चाहता हूं.’’

प्रधान न्यायाधीश, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के प्रधान संरक्षक भी हैं. उन्होंने विज्ञान भवन में, नालसा द्वारा छह सप्ताह तक चलाए जाने वाले ‘अखिल भारतीय विधिक जागरूकता और संपर्क अभियान’ की शुरुआत के मौके पर ये बातें कही. महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अखिल भारतीय अभियान का उद्घाटन किया.

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जीवंत न्यायपालिका आवश्यक
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जीवंत न्यायपालिका आवश्यक है. कोविड-19 ने न्यायपालिका सहित कई संस्थानों के लिए कई समस्याएं पैदा की हैं. अलग-अलग मंचों पर हजारों मामले जमा हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘बड़ी रिक्तियों के अलावा, अदालतों का काम न करना और ग्रामीण क्षेत्रों में वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधाओं की कमी…महामारी ने कुछ गहरी समस्याओं को उजागर किया है.’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि कमजोर वर्ग अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे तो समान न्याय की संवैधानिक गारंटी अर्थहीन हो जाएगी. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि विशेष रूप से गरीबों को ‘‘न्याय तक समावेशी पहुंच’’ प्रदान किए बिना स्थायी और समावेशी विकास हासिल नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान के निर्माता सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता से अच्छी तरह वाकिफ थे और इसलिए उन्होंने एक ऐसे कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना की, जहां किसी को भी जीवन की बुनियादी जरूरतों से वंचित न रखा जाए.’’

उन्होंने कहा, ‘‘उपरोक्त अधिकारों की रक्षा के लिए, कानून निर्माताओं ने हम सभी को कानून के समक्ष समान संरक्षण और समानता प्रदान की. लेकिन, समान न्याय की यह गारंटी अर्थहीन हो जाएगी यदि कमजोर वर्ग अपने अधिकारों को लागू नहीं कर सकता है.’’ उन्होंने कहा कि समानता और ‘‘न्याय तक पहुंच’’ एक दूसरे के पूरक हैं और प्रमुख सामाजिक-आर्थिक अंतराल वाले देशों में, न्याय तक असमान पहुंच इन विभाजनों को चौड़ा करती है.

लोगों का विश्वास जीतना जरूरी
न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि लोगों को यह महसूस करना चाहिए कि कानून और संस्थान सभी के लिए हैं और एक लोकतांत्रिक देश में लोगों का विश्वास और आस्था ही संस्थाओं को बनाए रखता है. उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास अर्जित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की गुणवत्ता, न्याय की गुणवत्ता पर टिकी हुई है. न्यायमूर्ति रमण ने 25 साल पहले स्थापना के बाद से नालसा की सेवाओं के लिए उसकी सराहना भी की.

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को सशक्त बनाना और सक्षम बनाना सच्ची स्वतंत्रता की कुंजी है जिसमें असमानता से मुक्ति, सपने देखने की स्वतंत्रता और उसे हासिल करने की स्वतंत्रता शामिल हैं.’’ उन्होंने कहा कि अब इन प्रयासों को एक आंदोलन में बदलना चाहिए और नालसा को सबसे कमजोर व्यक्ति तक और देश के कोने- कोने तक पहुंचना चाहिए.’’

कार्यक्रम में मौजूद रहे कई वरिष्ठ न्यायाधीश

इस अवसर पर वरिष्ठ न्यायाधीश और नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति यू यू ललित ने वरिष्ठ वकीलों से प्रतिवर्ष कम से कम तीन मामलों में कानूनी सहायता की पेशकश करने का आग्रह किया क्योंकि इससे कानूनी सहायता लेने के इच्छुक लोगों में विश्वास पैदा होगा.

मेडिकल कॉलेजों में इंटर्नशिप की अवधारणा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उसी तर्ज पर कानून के छात्रों को देश के दूरदराज के हिस्सों में गरीबों को कानूनी सेवाएं देने के लिए कहा जा सकता है. न्यायमूर्ति ललित ने कहा, ‘‘मैं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के लोगों के संपर्क में हूं और उन्होंने हमें आश्वासन दिया है…मुझे लगता है कि सभी विधि कॉलेज इसका समर्थन करेंगे.’’

उन्होंने कहा कि कानूनी जागरूकता कार्यक्रम में मदद करने के अलावा, विधि कॉलेज और छात्र, नालसा के ‘‘लक्ष्य तक पहुंचने और हमारे अभियानों को साकार करने’’ में मदद करेंगे. उच्चतम न्यायालय की कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर ने भी इस कार्यक्रम को संबोधित किया.

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