उत्तराखंड

Kumaon Wildlife : पहाड़ में 4 साल में 5 दर्जन बने जंगली जानवरों के निवाले, क्यों हो रहे हैं इतने हमले?

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अल्मोड़ा. पहाड़ी क्षेत्रों में साल-दर-साल जंगली जानवरों का आंतक बढ़ रहा है. पिछले 4 सालों में कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में वन्यजीवों की दहशत का सबूत यह है कि 60 लोगों की जान जा चुकी है जबकि सैकड़ों लोगों को जानवर घायल कर चुके हैं. इन जावरों में गुलदार यानी तेंदुओं और भालुओं का ही आतंक ज़्यादा रहा है. वन विभाग ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल मौतों की संख्या आधी ही रह गई है, लेकिन दहशत बरकरार है. बड़ा सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि जंगली जानवरों के हमले रिहाइशी इलाकों में बढ़ क्यों रहे हैं!

जानवरों के हमले में मौतों का रिकॉर्ड क्या है?
कुमांऊ क्षेत्र के वन संरक्षक प्रवीण कुमार ने बताया कि अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत और बागेश्वर में पिछले 4 सालों में गुलदार और भालू ने 5 दर्जन लोगों जान ली है. 2018-19 में 12 लोगों की जान गई और 62 लोग घायल हुए. 2019-20 में 10 मौतें हुईं जबकि 52 लोग घायल, 2020-21 में 28 मौतें, 101 घायल और 2021-22 में अब तक 9 लोगों की जान गई है और 42 लोग घायल हो चुके है. इस पूरे ब्योरे के बाद ज़ाहिर है कि पहाड़ के लोगों में दहशत का माहौल है. लेकिन रिहाइशी इलाकों तक जानवरों की पहुंच बढ़ कैसे गई?

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न्यूज़18 इन्फोग्राफिक्स.

आखिर क्यों बढ़ रहे हैं हमले?
सरकारी विभागों से आधिकारिक तौर पर तो इस बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा है, लेकिन अनौपचारिक तौर पर बताया जाता है कि कहीं जंगल कटने से तो कहीं जंगलों में भोजन की कमी के कारण जंगली जानवर आंगन तक पहुंच रहे हैं. दूसरी तरफ, उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं बेतहाशा बढ़ चुकी हैं. इससे जुड़े आंकड़ों पर एक नज़र डालें, तो बहुत कुछ साफ हो सकता है.

1. अल्मोड़ा, बागेश्वर समेत उत्तराखंड के 11 ज़िले जंगल की आग की चपेट में सबसे ज़्यादा रहे हैं.
2. इस आग से वन्यजीवन और वनस्पति का भारी नुकसान हुआ है.
3. कई जानवरों और पक्षियों के प्राकृतिक आवास खत्म हुए हैं तो 700 से ज़्यादा प्रजातियां खतरे में हैं.
4. 1 अक्टूबर 2020 से 4 अप्रैल 2021 तक उत्तराखंड के जंगलों में आग की 989 घटनाएं रिकॉर्ड हुईं. नवंबर 20 से जनवरी 21 के बीच ये घटनाएं 470 थीं और इसी अवधि में पिछले साल 39.
5. पिछले साल की तुलना में इस साल आग की घटनाएं 4.5 गुना बढ़ीं. पर्यावरणविद उत्तराखंड के जंगलों की आग को भविष्य में हिमालयी पर्यावरण तंत्र के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं.
6. वन विभाग के आंकड़ों की मानें तो इस साल 1297 हेक्टेयर से ज़्यादा में जंगल खाक हो गया.
7. जंगल की आग रिहाइशी इलाकों तक पहुंची तो सैकड़ों लोग बेघर हो गए.

कांग्रेस ने कही कड़े कदम उठाने की बात
इन तमाम आंकड़ों और स्थितियों के बीच जंगली जानवरों के हमलों से बनी दहशत उत्तराखंड चुनाव में मुद्दे के तौर पर उठाने की कोशिशें भी लगातार हैं. अल्मोड़ा से पूर्व विधायक मनोज तिवारी का कहना है कि भाजपा सरकार ने वन्यजीवों के हमले रोकने के लिए कोई पहल नहीं की, बल्कि पुराने कामों को रोकने की ही कवायद की है. कांग्रेस के सत्ता में आने पर जंगली जानवरों से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे, ज़रूरत पड़ी तो कानून भी बनाए जाएंगे.

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