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OPINION: आम मुद्दों के जरिए आम लोगों से जुड़ाव की रणनीति

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कटु आलोचकों की नजर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की मौजूदा जो छवि है, उसके पीछे उनकी उपलब्धियों की तुलना में उनकी जनसंपर्क कला और उनके रणनीतिकारों की सोच का कमाल है. आलोचक आए दिन यह कहते नहीं चूकते कि नरेंद्र मोदी की छवि परिश्रमपूर्वक जनसंपर्क के सिद्धांतों के मुताबिक बनाई गई है. बेलगाम सोशल मीडिया के मंचों पर अक्सर इस तथ्य को मोदी विरोधी ऐसे प्रस्तुत करते हैं, मानों उन्होंने नरेंद्र मोदी की कामयाबी की उजली तसवीर के पीछे का ऐसा काला दाग ढूंढ़ लिया है, जिसकी जानकारी दुनिया को नहीं है.

जब भी कहीं कोई चुनाव होते हैं, हर बार मोदी विरोधी यह साबित करने की कोशिश में जुट जाते हैं कि उनकी छवियां कितनी खोखली हैं? यह ठीक है कि ऐसी कोशिशें किंचित कामयाब होती भी हैं, लेकिन उस कामयाबी के बरक्स भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की छवि और मजबूत हो जाती है. चुनावी नतीजे अक्सर इसका जवाब दे देते हैं. उनके कट्टर विरोधी भी इस तथ्य को कम से ऑफ द रिकॉर्ड स्वीकार करते भी हैं. लेकिन ऑन रिकॉर्ड वे इस तथ्य को मानने से ना सिर्फ इनकार करते हैं और उसे खारिज भी कर देते हैं.

अगर हम मोदी विरोधियों की धारणा को ही स्वीकार कर लें, तब भी एक सवाल हमारे सामने उठ खड़ा होता है? क्या बेअंदाज सोशल मीडिया के दौर में सिर्फ जनसंपर्क की कलाबाजी के सहारे ही कोई राजनेता इतना लोकप्रिय बना रह सकता है? सवाल यह भी उठता है कि अगर मोदी की सोच और उपलब्धियां सचमुच इतनी खोखली होतीं तो क्या उसकी जानकारी लोगों को नहीं होती और उनकी छवि मिट्टी में नहीं मिल गई होती ! सार्वजनिक जीवन में जो भी सक्रिय हैं, चाहें वे राजनेता हों या फिर सिनेमा की दुनिया के लोग, आज सोशल मीडिया सबकी चीरफाड़ हो जाती है. इस चीरफाड़ के बाद अगर किसी की छवि पर आंच नहीं आती, जिसके प्रति धारणाएं नहीं बदल पातीं, मान लेना चाहिए कि उसका व्यक्तित्व और उसकी उपलब्धियां एक हद तक ठोस हैं.

नरेंद्र मोदी की उपलब्धियां ठोस हैं
नरेंद्र मोदी विरोधी सार्वजनिक तौर पर शायद ही स्वीकार करें, लेकिन हकीकत यही है कि उनकी उपलब्धियां ठोस हैं. अगर उनसे लोग जुड़ते हैं, उनकी छवि बड़ी जनसंख्या की नजर में अब भी सहज और बेदाग है तो इसकी बड़ी वजह है, आम लोगों से जुड़ने की उनकी सहज संवाद कला. आम लोगों से जुड़े मसलों को महत्वपूर्ण स्थानों और मौकों से उठाना उनकी ताकत को और बढ़ा देता है. अंग्रेजी पत्रिका ओपन को हाल ही में दिए अपने एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने इसे खुद स्वीकार किया है। जनता आखिर उन पर क्यों भरोसा करती है और लोगों की नजर में उनकी साख बनी रहती है, इसकी वजह बताते हुए मोदी ने कहा है, ‘जब मैं निर्णय लेता हूं तो आम आदमी को लगता है कि यह प्रधानमंत्री हमें समझता है, हमारी तरह सोचता है और हम में से एक है. उनके बीच अपनेपन की यह भावना हर परिवार को यह महसूस कराती है कि मोदी हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं. ये विश्वास किसी PR द्वारा बनाई गई धारणा से विकसित नहीं हुआ है. यह विश्वास पसीने और मेहनत से अर्जित किया गया है.’

आधुनिक संचार विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अपनी सहज संवादकला की वजह से गांधी जी सीधे आम लोगों के दिलों में अपना स्थायी निवास बना लेते थे. दिलों में घुसने की उनकी यह कला आम लोगों की ही तरह के रहन-सहन अपनाना और उनकी ही भाषा में बात करने के अलावा उनकी सामान्य समस्याओं को उठाने से विकसित हुई थी. नरेंद्र मोदी के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है.

भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जबरदस्त वक्ता थे, उनकी शब्दावली भी बहुत शानदार थी, लेकिन उनकी शब्दावली में किंचित अभिजात्य भी था. मोदी की शब्दावली में अभिजात्यपन कहीं नहीं हैं. उन्हें किसी पर चोट करनी होती है तो वह सीधे करते हैं और अगर किसी से जुड़ना होता है तो वह परंपराओं को तोड़ने से नहीं चूकते. राजनीति और राजनेता के बारे में आम धारणा है कि वह स्पष्ट बात नहीं करती. राजनीति के साथ चलते रही भ्रष्टाचार और अनाचार की कहानियों ने इस स्पष्टहीनता को साखहीन बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. मोदी के पहले के किसी राजनेता ने इस अलिखित परिपाटी को तोड़ने की कोशिश नहीं की. लेकिन मोदी इतर रहे. उन्होंने हर मौके पर स्पष्ट बात की. यह स्पष्टता आम लोगों को लुभाती है. लोगों को लगता है कि यह व्यक्ति ईमानदार है. ओपेन पत्रिका को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया है. हालांकि अपने अंदाज में.

मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के तौर पर सरकारी दफ्तर में नरेंद्र मोदी लगातार बीस साल से टिके हुए हैं. सात अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले उन्होंने कोई सरकारी दफ्तर नहीं संभाला था. उन्होंने दफ्तर चलाना सीखा, और शासन की तमाम अलिखित परंपराओं को भी देखा. उन्हें बारीकी से समझने की कोशिश की और जब तमाम पहलुओं को समझ गए तो जरूरत के मुताबिक उनमें बदलाव भी शुरू किया. इसका असर उनके कार्यक्रमों में भी दिखा. लिंग अनुपात बेहतर करने के लिए शुरू की गई कन्या कलवणी योजना हो या फिर शाला प्रवेशोत्सव या फिर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, अपनी तरह की अनूठी योजनाएं थीं. चूंकि जनता की भाषा में जनता के मुद्दों से जुड़ी ये योजनाएं थीं, इसलिए लोगों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया.

प्रधानमंत्री बनने के बाद लालकिले की प्राचीर से अपने पहले भाषण में मोदी ने जो कहा, वह भी परिपाटी तोड़ने जैसे ही था. देश की अस्वच्छता और शौचालय की समस्या कोई नई नहीं है. गांधी जी ने कलकत्ता के 1903 के कांग्रेस अधिवेशन में बतौर विदेशी प्रतिनिधि हिस्सा लिया था. उस वक्त से वे स्वच्छता को लेकर आग्रही हुए. लेकिन राष्ट्रीय अभियान यह अभियान कभी नहीं बना. लेकिन नरेंद्र मोदी पहले महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे, जिन्होंने लालकिले की प्राचीर से शौचालय की बात की और उसे राष्ट्रीय अभियान बनाने की कोशिश की. ओपेन को दिए इंटरव्यू में आम लोगों से जुड़ने की वजहों में अपने ऐसे ही कदमों को गिनाते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा है, ‘शौचालय को कभी किसी ने लोगों की सेवा करने के तरीके के रूप में नहीं देखा, लेकिन मुझे लगा कि शौचालय लोगों की सेवा करने का एक तरीका है.’

भारतीय राजनीति को लेकर पिछले पचास सालों में जो धारणा बनी है, प्रधानमंत्री मोदी इसके ठीक उलट व्यवहार करते हैं. उनका अपने परिवार से प्रत्यक्ष कोई रिश्ता नहीं है. उनके परिवार के लोग सत्ता केंद्र तो दूर की बात है, दिल्ली में भी नहीं दिखते. राजनीति के मतलब में परिवारवाद, वंशवाद और भ्रष्टाचार की कहानियां स्थायी भाव से जुड़ती रही हैं. यह तो नहीं कहा जा सकता कि इन बुराइयों से राजनीति मुक्त हो गई है. लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी के दौर में इनमें कम से कम भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकारों में कमी आई है. आज भारत का बड़ा से बड़ा मंत्री और मुख्यमंत्री तक झिझक और आशंका से घिरा दिखता है और भ्रष्टाचार की कहानियों से बचने की कोशिश करता नजर आता है. लोग समझते हैं कि यह बदलाव अगर आया भी है तो इसकी बड़ी वजह मोदी ही हैं. यह भी वजह है कि लोगों का उनके प्रति विश्वास और भरोसा बना हुआ है.

भरोसा करने वाले बरकरार हैं
भरोसा और विश्वास के इस भाव को सोशल मीडिया पर गालियां भी दी जा रही हैं. मोदी के प्रति भरोसा और भाव रखने वाले लोगों के लिए सोशल मीडिया ने शालीन गालियां भी गढ़ी हैं. इसके बावजूद भरोसा करने वाले बरकरार हैं और सबसे बड़ी संख्या में हैं. गाली सुनने और आलोचना के केंद्र में आ जाने के खतरे के बावजूद लोग मोदी पर भरोसा करते हैं तो उसकी बड़ी वजहें हैं उनका परिवार से दूर होना, साफ और बेलाग बात करना, मुद्दों पर स्पष्ट राय रखना और अब तक की अभिजात्य जैसी परंपराओं को तोड़ आम लोगों के मुद्दों और समस्याओं को सार्वजनिक तौर पर ना सिर्फ उठाना, बल्कि उनके समाधान के लिए जरूरी और ठोस कदम उठाना.

अपने इंटरव्यू में उन्होंने इनमें से ज्यादातर बातें नहीं कही हैं, लेकिन साफगोई से बता दिया है कि आम लोगों के मुद्दे उठाकर वे उनसे जुड़ते हैं, इसकी ही वजह से उनके प्रति लोगों का भरोसा बना हुआ है.यहां कमी विपक्ष की भी है कि उन्हें नैरेटिव के आधार पर घेरने की कोशिश करता है. लेकिन ज्यादातर बार आम लोग इस नैरेटिव को मोदी के ठोस व्यक्तित्व के खिलाफ षड्यंत्र समझने लगते हैं और वह विपक्ष के लिए उलटवार बन जाता है. पता नहीं मोदी विरोधी इस तथ्य को समझते हैं या नहीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि मोदी इसे बखूबी समझते हैं और वे इंतजार करते हैं कि उनके विरोधी उन्हें लेकर बनी धारणाओं पर चोट करें, जिसका उलटवार हो. मोदी राजनेता हैं, और ऐसे मौकों का अपनी छवि बनाने और लोगों का और ज्यादा भरोसा हासिल करने में इस्तेमाल करते हैं.

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