उत्तराखंड

Politics of Uttarakhand : बाढ़ में बर्बाद हुआ था केदारनाथ, कैसे बन गया उत्तराखंड की सियासत की धुरी?

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देहरादून. जब 2013 में बाढ़ से केदारनाथ बर्बाद हो गया था, तब उत्तराखंड में विजय बहुगुणा की सरकार थी और बहुगुणा ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को केदारनाथ धाम की सरज़मीन पर आने नहीं दिया था. सीएम मोदी ने तब भी यहां पुनर्निर्माण के लिए मदद की पेशकश की थी, लेकिन तब की राज्य सरकार ने इसे कबूल नहीं किया था. अब आठ साल बीतने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी बीते शुक्रवार को केदारनाथ पहुंचे और पुनर्निर्माण के कई कामों का उद्घाटन किया और इसी सरज़मीन से कहा कि उन्हें ‘विश्वास था कि केदारनाथ फिर जीवित होगा, और पहले की तुलना में ज़्यादा जीवंत.’

प्रधानमंत्री के तौर पर केदारनाथ की यह मोदी की पांचवी यात्रा थी. इससे पहले, मोदी यहां 2019 में आम चुनाव के संपन्न होने के बाद आए थे और तब यहां ध्यान करने की उनकी तस्वीरें काफी चर्चा में रही थीं. पीएम के फिर यहां आने के बाद किस तरह केदारनाथ से उत्तराखंड की राजनीति का संदेश जा रहा है, समझिए.

क्या बीजेपी की ज़मीन पर खड़ी है कांग्रेस?
दिलचस्प बात यह है कि जब शुक्रवार को मोदी केदारनाथ में थे, तब विपक्ष के नेता उत्तराखंड के अन्य शिवालयों में थे. कांग्रेस के चुनाव अभियान के प्रमुख हरीश रावत हरिद्वार के प्राचीन दक्ष प्रजापति मंदिर पहुंचे थे, जहां पुरोहित मंत्रोच्चार कर रहे थे. बहरहाल, रावत ने इस मौके पर श्रेय की राजनीति का मुद्दा उठाते हुए कहा कि पुनर्निर्माण कार्य उनकी सरकार में शुरू हुए थे, जिन्हें बीजेपी अपना बता रही है. उन्होंने कहा, ‘सत्ता में आने के बाद भी कांग्रेस इन निर्माण कार्यों को जारी रखेगी.’

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केदारनाथ में शुक्रवार को पीएम मोदी ने कई पु​नर्निर्माण कार्यों का लोकार्पण किया.

केदारनाथ का सियासी संदेश!
विधानसभा चुनाव 2022 की दौड़ में, ऐसा लग रहा है कि भाजपा उत्तराखंड में हिंदू स्वाभिमान और खास तौर से केदारनाथ या चार धाम में विकास के इर्द गिर्द सियासत करेगी. वहीं, इस रणनीति को भांपते हुए प्रधानमंत्री के दौरे से पहले हरीश रावत पिछले हफ्ते ही केदारनाथ धाम पहुंचे थे, जहां एक बाबा के साथ नाचते हुए उनकी तस्वीरें वायरल हुईं. इसके बाद, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस के प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू भी केदारनाथ गए थे.

अब इसे लेकर भाजपा के अल्पसंख्यक चेहरे और प्रवक्ता शादाब शम्स ने कहा कि कांग्रेस की मजबूरी है कि वह भाजपा की विचारधारा अपनाए. शम्स ने कहा, ‘कांग्रेस के लिए मंदिरों का रुख करना नई बात है क्योंकि इससे पहले ये लोग दूसरे धार्मिक स्थानों पर जाते थे.’ इस तकरार के बीच राजनीतिक विश्लेषक अविकल थपलियाल कहते हैं कि मौजूदा कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी भाजपा के पास भले ही पुष्कर सिंह धामी के रूप में युवा मुख्यमंत्री हों, लेकिन पार्टी की मुश्किलें कम नहीं हैं. इसलिए ‘भाजपा की उम्मीदें राज्य में पीएम मोदी के प्रभाव पर ही टिकी हैं.’

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