यूपी चुनाव: सुर्खियों में प्रियंका गांधी क्या एक बार फिर भाजपा के लिए X-फैक्टर साबित होंगी?
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लखनऊ. लखीमपुर (Lakhimpur) यात्रा के दौरान सीतापुर में हिरासत में आना, गेस्ट हाउस और वाल्मीकी इलाके में झाड़ू लगाना, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ लखीमपुर पहुंचना और अब पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के क्षेत्र वाराणसी में रविवार को महा रैली का आयोजन, इन सब कामों के चलते प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) बीते कुछ समय से सुर्खियों में बनी हुई हैं. अब कुछ लोग इसे उत्तर प्रदेश में सबसे पुरानी पार्टी या ग्रैंड ओल्ड पार्टी (GOP) के दोबारा जीवित होने की उम्मीद के तौर पर देख सकते हैं, लेकिन राज्य में भारतीय जनता पार्टी प्रियंका गांधी को मिल रही सियासी वरियता से परेशान नजर नहीं आ रही.
देखा जाए, तो ऐसा लग रहा है कि प्रियंका को ‘एक फैक्टर के तौर पर दिखाना’ बीजेपी की रणनीति है. जबकि, राज्य में बीजेपी के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, प्रियंका और कांग्रेस को राज्य में बगैर जनाधार के साथ ‘नॉन-फैक्टर’ के रूप में खारिज करते हैं.
दरअसल, 2014, 2017 और 2019 में सवर्णों और मुसलमानों ने कांग्रेस को कुछ वोट दिए थे, लेकिन इनकी संख्या असर दिखाने के लिए काफी नहीं थी. अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस को मिल रही सियासी तवज्जो के जरिए बीजेपी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि किन्हीं कारणों से उनसे नाराज राज्य के सवर्ण मतदाता सपा या बसपा के बजाए कांग्रेस को वोट दें. हालांकि, इसका एक बड़ा कारण भी है.
शुक्रवार को न्यूज18 से बातचीत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सवाल किया था कि बसपा समेत विपक्षी दल लखीमपुर हिंसा में मारे गए ‘ब्राह्मण युवकों’ के परिवारों से मिलने क्यों नहीं गए. इसी दौरान उन्होंने प्रियंका के सीतापुर में झाड़ू लगाने पर कहा कि ‘जनता नें उन्हें वहां पहुंचा दिया है.’ इससे प्रेरित कांग्रेस ने अब प्रदेश में नया अभियान शुरू कर दिया है, जिसमें पार्टी आरोप लगा रही है कि सीएम ने दलितों और महिलाओं का अपमान किया है.
हालांकि, सपा और बसपा लखीमपुर मामले में पिछड़ते नजर आ रहे हैं और इन दलों के कुछ नेताओं ने तो आरोप यहां तक भी लगा दिए कि यह भाजपा और कांग्रेस के बीच ‘फिक्स्ड मैच’ है. वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि कैसे प्रियंका को सोमवार को सीतापुर जाने दिया गया. जबकि, अखिलेश को उस दिन घर से बाहर भी नहीं निकलने दिया गया था. अब सवाल है कि क्या उत्साही कांग्रेस 2022 के चुनावों में बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी या सपा और बसपा को बड़ी चोट लगने की संभावना है.
इतिहास देखते हैं
प्रियंका ने यूपी के प्रभारी महासचिव के तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीति में कदम रखा था. उस दौरान उन्होंने राहुल गांधी के साथ लखनऊ में एक बड़ा रोड शो किया था. तब चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था. जबकि, कांग्रेस अकेले लड़ रही थी. विपक्षी गठबंधन के खाते में 80 में से केवल 15 सीटें ही आईं. इधर, कांग्रेस ने राहुल गांधी की हार के साथ अमेठी भी गंवा दिया. हालांकि, सोनिया गांधी राय बरेली सीट जीत गई थीं.
अब इस चुनाव के आंकड़ों ने भाजपा का ध्यान अपनी ओर खींचा. ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस ने सपा-बसपा-रालोद को करीब 10 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. क्योंकि इन सीटों पर जीतने वाले भाजपा उम्मीदवारों की जीत का अंतर कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले मतों से भी कम था. भले ही कांग्रेस केवल एक सीट जीती और लड़ने वाले 3/4 सीटों पर हारी हो, लेकिन इसने विपक्षी गठबंधन को अहम वोट जुटाने में काफी चोट पहुंचाई थी.
प्रियंका ने दावा किया था कि उन चुनावों में कांग्रेस लड़ रही सीटों पर जीतेगा या बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन आंकड़ों ने इन दावों को खारिज कर दिया. 2017 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने 2012 में पार्टी के 28 सीटों वाले प्रदर्शन को सुधारने की बड़ी योजना तैयार की और बालाकोट एयर स्ट्राइक्स से पहले प्रदेश स्तर पर खाट यात्रा की गई थी. इसके बाद कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया. उन चुनावों में कांग्रेस केवल सात सीटों पर सिमटकर रह गई थी.
यूपी में संगठन के स्तर पर बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी ‘आराम’ में नजर आती है. जबकि, सबसे कमजोर प्रतिद्विंदी, कांग्रेस की जमीन पर स्थिति कुछ बेहतर है और वह ज्यादा आक्रामक नजर आ रही है. यहां स्थिति बिहार से विपरीत हैं, जहां राजद के तेजस्वी यादव ‘संगठन और आक्रामक’ का एक संयुक्त रूप थे और चुनाव में भाजपा-जदयू के करीब ही रहे, लेकिन अपने साथी कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण चुनाव हार गए. यूपी के विपक्ष में तेजस्वी यादव जैसे कॉम्बिनेशन की कमी है और प्रियंका एक बार फिर बीजेपी के लिए 2022 के चुनाव में X-फैक्टर साबित हो सकती हैं.
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