खेत जोतता, खुद को जंजीरों में लपेटता; किसान की आप बीती सुन पसीज जाएगा कलेजा
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नई दिल्ली. पंजाब के रहने वाले कबाल सिंह हर सुबह कुर्ता-पायजामा पहनने के बाद खुद को भारी जंजीरों में लपेट लेते हैं और सिंघू सीमा स्थित कृषि कानून विरोध स्थल के चारों ओर घूमते हैं और वह इसे ‘‘किसानों की मानसिक स्थिति’’ बताते हैं. फाजिल्का जिले के रहने वाले छोटे किसान कबाल सिंह (44) दिन भर जंजीर में लिपटे घूमते हैं और इसी अवस्था में प्रदर्शनों में हिस्सा लेते हैं. कबाल सिंह केवल रात को सोने से पहले जंजीर हटाते हैं.
सिंह ने शनिवार को दावा किया कि वह प्रदर्शन स्थल पर ऐसा पिछले दिसंबर से कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बीच के कुछ दिन ऐसा नहीं किया जब वह अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार के लिए अपने गृहनगर गए थे.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पिछले साल दिसंबर में सिंघू सीमा विरोध स्थल पर आया था. मैं हर दिन एक प्रतीकात्मक विरोध के तौर पर खुद को जंजीर से लपेटता हूं. इसकी शुरुआत सुबह सात बजे होती है और रात को नौ बजे सोने से पहले इसे हटाता हूं.’’
सूती कुर्ता-पायजामा और हरे रंग की पगड़ी पहने कबाल सिंह स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की छवि वाला एक बिल्ला पहनते हैं. उन्होंने कहा कि वह ‘‘किसानों की मानसिक स्थिति’’ को बताना चाहते हैं.
किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली के विभिन्न सीमावर्ती इलाकों में करीब एक साल से प्रदर्शन कर रहे हैं. इसकी शुरुआत दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघू सीमा पर प्रदर्शन से हुई थी. वहां से यह आंदोलन धीरे-धीरे दिल्ली और उत्तर प्रदेश स्थित गाजीपुर सीमा और अन्य स्थलों तक फैल गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार की सुबह जब घोषणा की कि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है, तो इन स्थलों पर विरोध करने वाले किसानों में राहत का भाव था.
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सिंह ने कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूं और मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके फैसले के लिए धन्यवाद देता हूं. हालांकि, हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है. कृषि कानूनों को निरस्त करने के साथ, हम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी भी चाहते हैं. सरकार द्वारा हमारी मांगें पूरी होने के बाद मैं संयुक्त किसान मोर्चा के मंच पर अपनी जंजीरें हटा दूंगा.’’
सिंह ने कहा कि अपने 11 महीने के लंबे प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने कई करीबी लोगों को खो दिया है, लेकिन वह डटे रहे.
उन्होंने कहा, ‘‘विरोध शुरू होने से पहले, मैंने अपनी 20 वर्षीय बेटी पीलिया के चलते खो दी. मैंने उसके इलाज पर बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन फिर भी उसे बचा नहीं सका. आठ महीने पहले, मेरे पिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. मेरी मां भी फिसल गई थी और उसका कूल्हा टूट गया था. उसके बाद उनकी सर्जरी हुई जो सफल नहीं रही और पिछले महीने उनका भी निधन हो गया.’’
सिंह ने याद किया कि उन्होंने दो मौकों पर अपनी जंजीरें हटाई थीं, पहले अपने पिता के निधन पर और फिर अपनी मां के निधन पर अपने शहर वापस जाने के लिए. उन्होंने कहा, ‘‘अब, मेरे परिवार में मेरी पत्नी और 14 साल का बेटा है.’’
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