उत्तराखंड

अल्मोड़ा में अब भी ज़िंदा है सदियों की परंपरा, दर्जन भर रामलीलाओं का मंचन शुरू

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अल्मोड़ा. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में रामलीला के मंचन का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना रहा है. एक माह तक कलाकार रामलीला मंचन के लिए अभ्यास करते हैं और नवरात्रों की शुरुआत के साथ ही एक दर्जन जगहों पर रामलीला का मंचन शुरू होता है. इस साल भी शारदीय नवरात्र की शुरुआत से ही ज़िले भर में करीब एक दर्जन जगहों पर रामलीला का मंचन शुरू हो गया है. अल्मोड़ा में ऐतिहासिक रामलीला की कई विशेषताएं हैं. जैसे यहां रामलीला कई तरह के रागों में गायन के साथ प्रस्तुत की जाती है. इसके अलावा सीमित संसाधनों में कॉस्ट्यूम और सेट तैयार किए जाते हैं.

नन्दा देवी रामलीला के संयोजक प्रकाश पाण्डेय का कहना है कि नगर में एक दर्जन स्थानों पर अब रामलीला का मंचन शुरू हो चुका है. बता दें कि नन्दादेवी की रामलीला नगर में सबसे पुरानी रामलीला है, जो अपने 150 वर्ष पूरे कर चुकी है. पांडेय के मुताबिक रामलीला के लिए कलाकारों में काफी उत्साह रहता है और पूरे साल अगले साल और बेहतर मंचन को लेकर ​प्लानिंग की जाती है.

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अल्मोड़ा में डेढ़ सौ साल पुराना है रामलीला के मंचन का ​इतिहास.

रामलीला की ऐतिहासिक परंपरा
उत्तराखंड का नगर अल्मोड़ा अपने भीतर कई सांस्कृतिक इतिहास संजोकर रखता है. रामलीलाओं के मंचन से लेकर दशहरे में रावण परिवार के पुतलों के दहन तक, सब कुछ यहां उत्साह और व्यापक स्तर पर आयोजित होता है. रामलीला के लिए अब तो काफी संसाधन हैं, लेकिन इस नगरी ने वो दौर भी देखा है, जब यहां बिजली के अभाव में लालटेन और छिलके जलाकर रामलीला का मंचन होता था.

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क्या कहते हैं कलाकार?
रामलीला के वरिष्ठ कलाकार नवीन बिष्ट बताते हैं कि कई दशकों से रामलीलाओं में अलग-अलग पात्रों की भूमिका निभा चुके हैं और इस साल वह दशरथ के पात्र को स्टेज पर जीते हैं. रावण की भूमिका निभाने वाले विनोद शाह का कहना है कि वह पिछले 40 सालों में रामलीला के लगभग सभी अहम पात्र निभा चुके हैं. वह बताते हैं कि नन्दादेवी की रामलीला ऐतिहासिक रही है.

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