उत्तराखंड

Uttarakhand rains updates : बारिश ने कैसे तोड़े रिकॉर्ड? एक्सपर्ट्स ने बताया, क्यों लगातार बढ़ रही हैं ऐसी आपदाएं

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देहरादून. क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में करीब 40 जानें लेने वाली 72 घंटों की बारिश ने कितने रिकॉर्ड तोड़े हैं? पूर्वी उत्तराखंड में इससे पहले कभी इतनी बारिश दर्ज नहीं की गई थी, जितने पिछले दो से तीन दिनों के भीतर हुई. सिर्फ यही आंकड़ा यह संकेत देने के लिए काफी समझा जा सकता है कि उत्तराखंड में मौसम कितना बड़ा संकट बन चुका है, जो राज्य को प्राकृतिक आपदाओं का गढ़ बना रहा है. लेकिन सवाल यही खड़ा होता है कि ऐसा हो क्यों रहा है! जानकारों की मानें तो ज़मीन के इस्तेमाल के पैटर्न में बदलाव से स्थानीय पर्यावरण को घातक नुकसान हो रहा है. इसे ठीक से समझना ज़रूरी है.

कहां कैसे हुई रिकॉर्ड तोड़ बारिश?
मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक आंकड़ों में देखिए कि किन इलाकों में किस तरह बारिश हुई है. इसके बाद एक्सपर्ट्स के हवाले से आपको बताएंगे कि उत्तराखंड किस तरह आपदाओं का न्योता दे रहा है.

1. नैनीताल के मुक्तेश्वर इलाके में 24 घंटे में 340.8 मिमी बारिश दर्ज हुई, जो 1897 से आज तक सबसे ज़्यादा आंकड़ा है. इससे पहले यहां 1914 में रिकॉर्ड 254.4 मि​मी बारिश हुई थी.
2. यूएस नगर के पंतनगर इलाके में 10 जुलाई 1990 को 228 मिमी रिकॉर्ड बारिश हुई थी, जबकि अब 403.9 मिमी बरसात हुई.
3. चमोली और यूएस नगर जैसे ज़िलों में 24 घंटों में औसत से 10,000 फीसदी ज़्यादा बारिश हुई है. अक्टूबर के पहले 18 दिनों में पूरे राज्य में 178.4 मिमी बारिश हुई है जो औसत से 485 फीसदी ज़्यादा है.
4. कुमाऊं अंचल में बारिश ने 124 साल के रिकॉर्ड तोड़ दिए. कुमाऊं के कुछ इलाकों में 500 मिलीमीटर तक रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई.

भारी बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं, कैसे?
आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र के बिक्रम सिंह बताते हैं कि उत्तराखंड के मौसम पर केंद्रित 2016 से 2020 के बीच जो आईएमडी और आईआईटीएम के अध्ययन हुए हैं, उनके मुताबिक पिछले पांच और खासकर तीन सालों में भारी बारिश की घटनाएं बेहद बढ़ी हैं. अहम बात यह भी है कि जितनी बारिश रिकॉर्ड की जा रही है, उससे ज़्यादा भी हो सकती है क्योंकि कई क्षेत्रों में रिकॉर्ड करने के लिए मौसम स्टेशन ही नहीं हैं.

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न्यूज़18 क्रिएटिव

कितना बड़ा है नुकसान?
इन हालात के मद्देनज़र आंकड़ा ये भी है कि 2014 से 4000 से ज़्यादा जानें राज्य में मौसमजनित हादसों में गई हैं. पिछले सात सालों में 1961 मौतें भूस्खलन की दुर्घटनाओं में हुई हैं. इसका कारण क्या है? तकरीबन सभी जानकार इस पर सहमत हैं ​कि अंधाधुंध विकास और बेतरतीब व बगैर प्लानिंग के सड़क व इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण इसके बड़े कारण हैं. मिसाल के तौर पर 1901-02 में नैनीताल में झील के पास करीब 520 निर्माण थे, जो अब 7000 से ज़्यादा हैं.

क्या कह रहे हैं जानकार?
हिमालयीन पर्यावरण के अध्येता अनिल जोशी ने एचटी को बताया, ‘विकास के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं, सड़कों के लिए पहाड़, संवेदनशील वादियों में हाइडेल प्रोजेक्ट बन रहे हैं, नदियों का उत्खनन बेतहाशा हो रहा है, तो ये तमाम फैक्टर हैं जिनसे हिमालयी पर्यावरण तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.’ वहीं, ग्लेशियरों के मशहूर जानकार वैज्ञानिक डीपी डोभाल के हवाले से एचटी ने लिखा, ‘साफ तौर पर दिख रहा है कि बाढ़ की स्थितियां बढ़ रही हैं. पिछले करीब 100 सालों में हिमालय का तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है.’

एक्सपर्ट्स साफ तौर पर मान रहे हैं कि सड़कें काटे जाने, मलबे के अवैज्ञानिक निस्तारण, अवैध माइनिंग, पहाड़ी कृषि में बढ़ोत्तरी और वन्य क्षेत्र में कोई खास इज़ाफा न करने से राज्य में बारिश जनित भूस्खलन जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं. एचटी की विस्तृत रिपोर्ट में भारत के पिछले दो वन सर्वे के हवाले से कहा गया है कि उत्तराखंड में 2015 से 2019 के बीच वन कवर 1 प्रतिशत भी नहीं बढ़ा.

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