राष्ट्रीय

जब पटेल ने दुखी होकर दिया इस्तीफा तो क्या था नेहरू का जवाब

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15 अगस्त 1947 के बाद सरदार पटेल बहुत तेजी के साथ देश का एकीकरण कर रहे थे. कश्मीर को लेकर पहले पटेल का रुख बहुत सक्रिय नहीं था लेकिन कबायली हमले के बाद उनका रुख बदला और कश्मीर के भारत में विलय के लिए जीतोड़ कोशिश की लेकिन उनकी इन कोशिशों के बीच इस मामले पर कई ऐसी बातें हुईं, जिससे वो दुखी हो गए और उन्होंने एक पत्र के साथ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इस्तीफा भेज दिया. नेहरू ने भी तुरंत इसका जवाब दिया.

तब सरदार पटेल देश के उप प्रधानमंत्री और राज्य मंत्रालय (गृह) के मंत्री थे. दिसंबर 1947 में जब सरदार पटेल पूरी तरह सक्रिय हो चुके थे, तब कुछ बातों को लेकर नेहरू ने खुद कश्मीर के मामलों को फैसला किया. सरदार पटेल पर लिखी महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी की किताब पटेल ए लाइफ में इस पर विस्तार से लिखा गया है.

नेहरू को लग रहा था कि विभाग रहित मंत्री गोपाल आयंगर कश्मीर के बारे में ज्यादा बेहतर जानते हैं, लिहाजा उन्होंने आयंगर को कश्मीर के मामलों को देखने और उसकी रिपोर्ट सीधे उन्हें देने की जिम्मेदारी दे दी. आयंगर संविधान विशेषज्ञ थे और कश्मीर के दीवान रह चुके थे. जब आयंगर ने अपनी रिपोर्ट सीधे नेहरू को भेजनी शुरू की तो पहले पटेल को ये बात अच्छी नहीं लगी.

हुआ क्या था
पटेल ने जब इसे लेकर सीधे आयंगर से स्पष्टीकरण मांग लिया तो नेहरू बहुत परेशान हो गए. उन्होंने तुरंत काम का बंटवारा कर दिया और पटेल को लिखा, कश्मीर संबंधी मामलों को देखने के लिए आयंगर से विशेष रूप से कहा गया है. कश्मीर के बारे में उनकी गहरी जानकारी और अनुभव है, लिहाजा उनको पूरी छूट मिलनी चाहिए. उन्होंने ये भी लिखा कि आय़ंगर के साथ जो व्यवहार किया गया है, वो उचित नहीं है.

पटेल ने पत्र के साथ इस्तीफा भेजा
इसके जवाब में पटेल ने 23 दिसंबर 1947 को नेहरू को लिखे एक पत्र के साथ अपना इस्तीफा ही भेज दिया.

नेहरू के लिए पटेल का पत्र, 23 नवंबर 1947
आपका आज का पत्र अभी एक बजे मुझे मिला है और आपको तुरंत बताने के लिए ये पत्र लिख रहा हूं. इस पत्र से मुझे दुख हुआ है..आपके पत्र से साफ प्रतीत हो रहा है कि मुझे मंत्री के रूप में सरकार में नहीं रहना चाहिए या मैं नहीं रह सकता, इसलिए इसके साथ मैं अपना त्यागपत्र भेज रहा हूं. जब मैं पद पर था, वह समय अत्यंत तनावपूर्ण था और उस समय आपने मेरे प्रति जो विवेक और अपनत्व दिखाया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूं.

नेहरू का जवाबी पत्र
उसी रात नेहरू का जवाबी पत्र उनके पास पहुंचा, मेरे लिखने से आपको दुख हुुआ, इसका मुझे खेद है. जिस तरह की घटनाएं घटीं, उनसे मेरे और आपके बीच जिस तरह की कठिनाइयां पैदा हुईं, उससे मैं खुद भी बहुत दुखी हूं. हम एक दूसरे का भले कितना ही सम्मान करते हों लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हमारे दृष्टिकोणों में बहुत अंतर है. मुझे प्रधानमंत्री के रूप में बने रहना है तो मेरी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए और मुझे निर्देश देने की कुछ छूट होनी चाहिए. इससे तो अच्छा है मैं निवृत हो जाऊं. दुर्भाग्यवश यदि मुझे या आपको भारत सरकार छोड़नी पड़े तो हम गौरव औऱ सद्भाव के साथ अलग हों. अपने संदर्भ में तो मुझे त्यागपत्र देकर आपको बागडोर सौंप देने में खुशी होगी.

फिर पटेल का जवाब
दूसरे दिन दोपहर को वल्लभ भाई ने उत्तर दिया. निर्देश देने की आपकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की मेरी कोई इच्छा नहीं है और अभी तक आमतौर पर मैने ऐसा किया भी नहीं है. आपके त्यागपत्र देने का या अपना काम छोड़ देने का सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं कि हम जो भी फैसला लें, वह गौरव और सद्भाव के साथ लें और इसमें किसी भी स्थिति में आपकी सहायता करने की मैं पूरी कोशिश करूंगा, किंतु मुझे विश्वास है कि मैं निरर्थक रूप से लंबे समय तक आपके साथ चलता रहूं, ऐसा आप भी नहीं चाहेंगे.

इस्तीफा देने के बाद पटेल ने क्या किया
इसके बाद पटेल ने देश में एकीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी. उन्होंने देश के 40 राज्यों को उड़ीसा और मध्य प्रांत में मिलाने के बाद पूरे हिंदुस्तान में एकीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी. फिर काठियावाड़ के 222 राज्यों को मिलाने का काम शुरू किया. 23 दिसंबर को अपना त्यागपत्र भेजने के बाद उन्होंने कई यात्राएं की. कई जगह भाषण दिए.

फिर महात्मा गांधी ने क्या फैसला किया
अब सरकार में कौन रहेगा या कौन जाएगा, ये फैसला महात्मा गांधी की करना था. पटेल जाएंगे या नेहरू-इसका फैसला गांधी पर ही छोड़ दिया गया था. पटेल को लग रहा था कि उन्हें ही जाना होगा. नेहरू और माउंटबेटन भी चाहते थे कि सरदार पटेल सरकार के लिए जरूरी हैं, लिहाजा उनका सरकार में बने रहना जरूरी है. फिर महात्मा गांधी ने फैसला किया कि सरदार पटेल नहीं जाएंगे बल्कि नेहरू और पटेल मिलकर ही काम करेंगे.

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