राष्ट्रीय

EXPLAINED: क्या मरीज की त्वचा का रंग पहचान लेता है ऑक्सीमीटर? समझें पूरा मामला

[ad_1]

(कीनिथ मोहंती)

नई दिल्ली/लंदन. कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के दूसरे फेज में दुनियाभर के अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर की भारी किल्लत देखी गई थी. ऐसे में होम आइसोलेशन (Home Isolation) में रह रहे कोरोना मरीजों के लिए पल्स ऑक्सीमीटर ( Pulse Oximeters)एक बड़ा सहारा था. लेकिन अब पल्स ऑक्सीमीटर को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है. दरअसल, यूनाइटेड किंगडम के स्वास्थ्य सचिव साजिद जाविद ने कोरोना के इलाज में काम आने वाली पल्स ऑक्सीमीटर समेत मेडिकल डिवाइस की एक समीक्षा शुरू करने का ऐलान किया है. जाविद का दावा है कि पल्स ऑक्सीमीटर की रीडिंग गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों के मामले में क सटीक आती है. इस संभावना की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि इसके कारण हो सकता है कि कोविड महामारी के दौरान हजारों परिहार्य मौतें हुईं. लिहाजा पल्स ऑक्सीमीटर समेत अन्य मेडिकल डिवाइस की समीक्षा कराई जा रही है.

आइए जानते हैं कि मेडिकल डिवाइस को लेकर क्या आशंका जताई जा रही है और ऑक्सीमीटर के साथ ये विवाद क्या है:-

मेडिकल डिवाइस के बारे में क्या आशंका है?
करीब 2 साल से चल रही कोरोना महामारी के बीच कोविड-19 के मरीज के लिए पल्स ऑक्सीमीटर का रोल ठीक वैसा ही है, जैसा बुखार के मरीज के लिए थर्मामीटर का होता है. हालांकि, विशेषज्ञों ने पाया है कि जब गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों की बात आती है, तो इन उपकरणों से रीडिंग सटीक नहीं आती. विवाद इसी को लेकर है.

कोरोना के इलाज में कारगर साबित हो रही ये गोली, 90% कम हुआ जान जाने का खतरा

रिपोर्टों में कहा गया है कि ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि ये उपकरण खून के माध्यम से लाइट को पास करते हैं. लाइट कैसी आ रही है, इसके आधार पर ही स्किन पिगमेंटेशन का असर देखा जा सकता है. बीबीसी ने पल्स ऑक्सीमीटर पर स्टडी को लीड कर चुके अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के डॉक्टर माइकल सोजोडिंग के हवाले से कहा, ‘कम से कम दो बार शायद तीन गुना अधिक बार पल्स ऑक्सीमीटर डिवाइस ने गहरे रंग की त्वचा वाले रोगियों के मामले में कम सटीक रीडिंग दी है.’

यह एक संभावना की ओर इशारा करता है कि पल्स ऑक्सीमीटर की गलत रीडिंग ने कोविड मरीजों के एक वर्ग के इलाज में गंभीर दिक्कतें पैदा कर दी. अगर ऑक्सीमीटर की रीडिंग सटीक होती, तो शायद वक्त रहते इन मरीजों की जान बचाई जा सकती थी.

ऐसे मेडिकल डिवाइस में इन दिक्कतों को दूर करने के लिए क्या किया जा रहा है?
यूके के स्वास्थ्य सचिव साजिद जाविद ने कहा कि यूके चिकित्सा उपकरणों में प्रणालीगत नस्लवाद और पूर्वाग्रह की जांच करने के लिए अमेरिकी अधिकारियों के साथ साझेदारी करेगा, क्योंकि यह एक स्पष्टीकरण पर पहुंचने के तरीके के रूप में है. इसके तहत देखा जाएगा कि पल्स ऑक्सीमीटर नस्लीय अल्पसंख्यकों और महिलाओं के केस में अपेक्षाकृत कम सटीक रीडिंग क्यों दे रहा है.

हालांकि, बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यूके के डॉक्टर्स यूनियन, ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन (बीएमए) ने आग्रह किया है कि इस समीक्षा को चिकित्सा उपकरणों में आशंकाओं के अध्ययन करने से इतर स्वास्थ्य सुविधाओं के भीतर ‘संरचनात्मक मुद्दों के रूप में देखा जाना चाहिए.

मेडिकल डिवाइस में नस्लभेद जैसी आशंका कैसे हो सकती है?
एक अंग्रेजी दैनिक में एक लेख के माध्यम से समीक्षा की घोषणा करते हुए जाविद ने कहा कि ऐसी आशंकाएं चिकित्सा विज्ञान को सूचित करने वाली प्रक्रियाओं और तंत्रों में खामियों को भी उजागर करती हैं. जाविद के मुताबिक,
‘मशीन को देखकर यह मान लेना आसान है कि इससे सभी को समान अनुभव मिल रहा है, लेकिन टेक्नोलॉजी लोगों ने बनाई और विकसित की है. इसलिए इसमें खामियां होंगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता. बेशक, बिना पूरे नियमों के और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से इन डिवाइस का इस्तेमाल करना एक दूसरा मुद्दा है. इसलिए कोड कौन लिख रहा है? किसी प्रोडक्ट की टेस्टिंग कैसे की जाती है? ये सब लोगों के सामने आना चाहिए.’

मोतियाबिंद से हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी दिल की बीमारियों का खतरा- स्टडी

नस्ल और जातीयता से जुड़े सामाजिक-आर्थिक कारकों को स्वास्थ्य प्रभावों से जोड़ा जाता है, को अच्छी तरह से जाना कुछ समुदायों में कोविड -19 और अन्य बीमारियों के अधिक गंभीर प्रभाव भी देखने को मिले हैं. के लिए एक स्पष्टीकरण के रूप में देखा गया है। उदाहरण के लिए कारखाने, किराना स्टोर और सार्वजनिक परिवहन. यहां काम करने वाले लोगों में कोविड -19 के संपर्क में आने की अधिक संभावना हो सकती है.

ऐसे में क्या हमें पल्स ऑक्सीमीटर के इस्तेमाल से बचना चाहिए?
एक्सपर्ट ऑक्सीमीटर जैसे डिवाइस के प्रति और जागरूक होने और इसके सीमित इस्तेमाल की सलाह देते हैं. यूके की अथॉरिटी ने ऑक्सीमीटर में खामियों के बीच अलग-अलग नस्लों, श्वेत, अश्वेत, एशियाई और दूसरे समुदायों के मरीजों के लिए गाइडलाइन अपडेट की है. इन समुदायों के लोग ऑक्सीमीटर का इस्तेमाल नए गाइडलाइन के मुताबिक कर सकते हैं. लेकिन इसके साथ ही उन्हें प्रोफेशनल हेल्थकेयर एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए.

नस्ल और कोरोना वायरस को जोड़कर क्यों देखा जा रहा?
नस्लीय पूर्वाग्रह समीक्षा की घोषणा से पहले इंग्लैंड में सरकारी स्वास्थ्य आंकड़ों से पता चला है कि श्वेत लोगों की तुलना में अश्वेत लोगों में कोविड -19 से मरने की संभावना दो से चार गुना अधिक थी, जबकि एशियाई मूल के लोगों की मृत्यु 1.5 गुना थी.

वहीं, अमेरिका के रिपोर्टों में कहा गया है कि 595 में से 1 श्वेत अमेरिकियों की मौत कोविड से हुई, जबकि अश्वेत अमेरिकियों के लिए ये अनुपात 735 में 1 तक बढ़ गया. लैटिन अमेरिकियों के लिए 1000 में 1 का अनुपात रहा. गरीबी को कुछ समुदायों पर महामारी के असमान प्रभाव पर एक मजबूत असर के रूप में देखा जा रहा है. (अंग्रेजी में इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

Tags: Coronavirus breaking news, Coronavirus Case in India, Pulse Oximeter, Racial remarks



[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fapjunk