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Indo-Pak War 1971: पाक के ‘अभेद्य किले’ पर कब्‍जा कर L/COL संंधू ने बदला जंग का रुख, पढ़ें वीरता की पूरी कहानी

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नई दिल्‍ली. Know Your Army Heroes: 1971 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध (Indo-Pakistani War 1971) से ठीक पहले नरिंदर सिंह संधू ने डोगरा रेजिमेंट की 10वीं बटालियन में लेफ्टिनेंट कर्नल का पद संभाला था. बटालियन की बागडोर संभालने के साथ ही लेफ्टिनेंट कर्नल नरिंदर सिंह संधू (Lieutenant Colonel Narinder Singh Sandhu) को दुश्‍मन के ठिकाने को कब्‍जे में लेने की जिम्‍मेदारी सौंपी गई थी. दुश्‍मन का यह ठिकाना डेरा बाबा नानक इलाके में रावी नदी के पूर्वी छोर पर स्थिति था. पाकिस्‍तानी सेना ने अत्‍याधुनिक मशीनगनों, टैंकरोधी हथियारों, पिलबॉक्‍सो की एक विस्‍तृत प्रणाली और बंकरों को जोड़ने वाली सुरंगों के जरिए अपने इस ठिकाने को अभेद्य किले में तब्‍दील कर रखा था. पाकिस्‍तानी सेना इस ठिकाने का इस्‍तेमाल बतौर वॉर रूम कर रहा था.

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रावी नदी पर बने पुल और उसके छोर पर बने दुश्‍मन के अभेद्य किले पर कब्‍जा इसलिए भी जरूरी था, क्‍योंकि दुश्‍मन इसी रास्‍ते पठानकोट, व्‍यास शहर और अमृतसर की ओर रुख कर सकता था. दुश्‍मन के मंसूबों को भांपते हुए 5 दिसंबर 1971 की शाम 5:30 बजे लेफ्टिनेंट कर्नल नरिंदर सिंह संधू अपनी बटालियन के लगभग 420 जवानों और 21 टैंकों के साथ लक्ष्य की तरफ कूच कर गए. लेफ्टिनेंट कर्नल संधू का टैंक रावी नदी के किनारे दलदल में फंस गए, लिहाजा उन्‍होंने पैदल ही दुश्‍मन के गढ़ तक जाने का फैसला किया. लेफ्टिनेंट कर्नल संधू अपने साथियों के साथ टैंक से उतर गए और करीब 5 किमी पैदल चलकर पुल तक पहुंच गए.

दुश्‍मन की भारी गोलाबारी के बीच लेफ्टिनेंट कर्नल नरिंदर सिंह संधू अपने साथियों के साथ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते गए और एक-एक कर पाकिस्‍तानी सेना के बंकरों को नेस्‍तनाबूद करना शुरू कर दिया. इस जंग में लेफ्टिनेंट कर्नल नरिंदर सिंह संधू के पैर में गोली लग गई, बावजूद इसके उन्‍होंने दुश्‍मन से मोर्चा लेते हुए अपने साथियों का नेतृत्‍व जारी रखा. अंतत: भारतीय सैनिकों के युद्ध कौशल और बहादुरी के सामने पाकिस्‍तानी सैनिक टिक नहीं पाए. लेफ्टिनेंट कर्नल संधू ने इस युद्ध में 22 पाकिस्तानी सैनिकों को गिराया और 14 को बंधक बना लिया. बाकी दुश्‍मन मौके से भाग खड़े हुए. 1971 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध का रुख बदलने में ले.कर्नल नरिंदर सिंह संधू की यह जीत बेदह कारगर साबित हुई.

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इस ऑपरेशन के दौरान लेफ्टिनेंट कर्नल संधू की वीरता, नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए भारत सरकार द्वारा सराहना की गई और उन्हें वीरता के लिए दूसरा सर्वोच्च पु‍रस्‍कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. उल्‍लेखनीय है कि लेफ्टिनेंट कर्नल संधू ने 1965 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध में भी दुश्‍मनों को धूल चटाई थी. उस समय वे तीसरी कैवलरी रेजिमेंट और 65वीं बख्तरबंद रेजिमेंट में कार्यरत थे. युद्ध के पश्‍चात, उन्‍होंने पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ राष्ट्रीय कैडेट कोर निदेशालय के उप महानिदेशक के रूप में कार्य किया और ब्रिगेडियर के रूप में सेना से सेवानिवृत्त हुए. 30 मार्च 2018 को चंडीगढ़ में 85 वर्ष की आयु में कोलन कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई.

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Tags: Heroes of the Indian Army, Indian Army Heroes, Indo-Pak War 1971



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