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मिस्र में मिले लुप्त हो चुके दुर्लभ सूर्य मंदिर, यहां रेगिस्तान में होती थी देवताओं की पूजा?

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काहिरा. पिरामिडों के लिए मशहूर मिस्र में पुरातत्वविदों को अक्सर ही ऐसी ही चीजें मिलती हैं जो लोगों को हैरानी में डाल देती है. पिरामिडों के अंदर अब पुरातत्वविदों ने ऐसे ही दुलर्भ सूर्य मंदिर की खोज की है इसे देखकर पुरातत्वविद हैरान हो गये हैं और अब इस बात की पड़ताल कर रहे हैं, कि क्या उस वक्त मिस्र के रेगिस्तान में पूजा अर्चना होती थी? पुरातत्वविदों का कहना है कि यह सूर्य मंदिर लगभग 4500 साल पुराना है और यह लंबे समय से रेगिस्तान में दबा हुआ था. मिस्र के आर्कियोलॉजिस्ट का मानना है कि यह पिछले दशक की सबसे बड़ी खोज है. आज से लगभग 4500 साल पहले इस सूर्य मंदिर को मिस्र फैरोह ने बनावाया था.

वॉरसॉ स्थित एकेडमी ऑफ साइंसेज में इजिप्टोलॉजी के असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. मासिमिलानो नुजोलो ने कहा कि हमने ऐसी प्राचीन वस्तुओं की खोज के लिए काफी समय दिया है. लेकिन जब ऐसा कुछ मिलता है जो पूरी सभ्यता, संस्कृति और उस समय के निर्माणकला विज्ञान को दर्शाता है तो हैरानी होती है. बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

पुरातत्वविदों का कहना है कि यह सूर्य मंदिर पांचवें साम्राज्य के फैरोह ने बनवाया था. फैरोह चाहते थे कि मिस्र में रहने वाले सभी लोग उन्हें भगवान का दर्जा दें. एक तरफ यह सूर्य मंदिर बनवाया गया तो दूसरी तरफ पिरामिड्स बनवाए गए थे, जहां पर फैरोह के मरने के बाद उनकी कब्र बनाई बनाई गई. ताकि मरने के बाद वह भगवान का स्वरूप बनकर दुनिया के सामने रह सकें. पुरातत्वविदों ने और जांच की तो पता चला कि मंदिर का निर्माण मिट्टी से बने ईंटों से किया गया था. जिसकी दो फीट गहरी नींव चूना पत्थरों से बनाई गई थी.

पुरातत्वविदों ने 19वीं शताब्दी में नुसेरे के पत्थर के मंदिर के नीचे इस पत्थर की इमारत के एक बहुत छोटे हिस्से की खुदाई की, और निष्कर्ष निकाला कि यह उसी मंदिर के लिए एक पहले की इमारत का चरण था. हालांकि, हाल की खोजों से पता चला है कि यह इमारत पूरी तरह से अलग थी, और इसे नुसेरे द्वारा बनाया गया था.

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