UAPA के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस
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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कुछ पूर्व आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों द्वारा गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 (UAPA) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार (Central Government) को नोटिस जारी किया है. द इंडियन एक्सप्रेम की खबर की माने तो भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूर्व आईएएस अधिकारियों हर्ष मंदर, वजाहत हबीबुल्लाह, अमिताभ पांडे, कमल कांत जायसवाल, हिंदाल हैदर तैयबजी, एमजी देवसहायम, प्रदीप कुमार देब, बलदेव भूषण महाजन, पूर्व आईपीएस अधिकारी जूलियो फ्रांसिस रिबेइरो, इश कुमार और पूर्व आईएफएस अधिकारी अशोक कुमार शर्मा की याचिका पर नोटिस जारी किया है.
इसकी दलील में कहा गया है कि अधिनियम के तहत सफल अभियोजन की दर कम है और इससे नागरिक खुद को लंबे समय तक बंधक की तरह पाते हैं, यहां तक की कुछ की मौत भी हो जाती है, जो इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि धारा 43डी (5) अधिनियम के वास्तविक उद्देश्यों को प्राप्त करने की जगह मनचाहे ढंग से असहमति को दबाने के काम में आती है. यह धारा प्रतिबंध के साथ जमानत देने से संबंधित है.
उन्होंने कहा कि हालांकि यह एक निरोध निवारक कानून नहीं है. यूएपीए प्रावधानों की कठोरता, विशेष रूप से जमानत के संबंध में देखी जा सकती है. यह अनुच्छेद 22 के संरक्षण के बिना एक प्रकार से निरोध निवारक कानून के समान ही है.
याचिका में कहा है कि यह अधिनियम ‘ आतंकवादी अधिनियम’ को एक ऐसे काम के रूप में परिभाषित करता है जिससे आतंक होना बताया गया है, लेकिन इससे ‘आतंक क्या है’ के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलती. इस याचिका में कहा गया है कि इस अधिनियम से मनमानी व्याख्याएं होंगी और ये किसी व्यक्ति के जीवन और उसकी स्वतंत्रता को प्रभावित करेंगी. इन कारणों से समाप्त कर देना चाहिए.
ऐसा बताया गया है कि यूएपीए के तहत सजा की औसत दर 2.19 प्रतिशत रही है. याचिका में कहा गया है कि यह दर्शाता है कि यूएपीए के तहत सजा की औसत दर 2.19 प्रतिशत रही है. ऐसे में यह दर्शाता है कि यूएपीए के तहत मुकदमा या तो बुरे विश्वास से शुरू किया गया या फिर सबूत पर्याप्त नहीं है. इससे मंजूरी देने से पहले पूरी प्रक्रिया की स्वतंत्र समीक्षा पर सवाल खड़े होते हैं.
याचिका ने कोर्ट से आग्रह किया है वह धारा 43डी(5) के प्रावधानों को स्पष्ट रूप से मनमाना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन जैसा घोषित कर दे. यूएपीए के चैप्टर IV और चैप्टर VI के तहत आरोपी सभी व्यक्तियों को सभी सामग्री प्रदान करने का निर्देश दिया है. याचिका में कहा गया है कि सरकार को विस्तृत स्वीकृति आदेश देने के लिए निर्देश दें, जिसमें स्वीकृति प्राधिकारी द्वारा स्वतंत्र समीक्षा को स्पष्ट करने वाले कारण होने चाहिए. साथ ही जो यूएपीए के तहत बंदी बनाए गए हैं और या फिर जिन्हें आखिरकार बरी कर दिया गया है, जेल में बिताए गए समय के अनुपात में मुआवजे की मात्रा बढ़ रही है, ऐसे में सरकार को लोगों को मुआवजा देने के लिए एक उपयुक्त योजना स्थापित करने के निर्देश दें.
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Tags: Supreme Court, UAPA
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