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Snake Bite Murder Case: 14 साल या फिर ताउम्र! आखिर कितने वर्ष का होता है आजीवन कारावास?

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Snake Bite Murder Case/ Double Life Sentence/ What Is Life Term: केरल के कोल्लम की एक स्थानीय अदालत ने कोबरा सांप से डसवाकर पत्नी की हत्या करने के दोषी एक व्यक्ति को दोहरे आजीवन कारावास (double life term) की सजा सुनाई है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह एक बेहद दुर्लभ ( rarest of the rare case) मामला है. लेकिन उसने पति पी. सूरज की उम्र को देखते हुए मृत्यु दंड की सजा नहीं सुनाई. अदालत के इस फैसले से एक बार आजीवन कारावास की सजा और उसकी अवधि को लेकर बहस होने लगी है.

अदालत के अनुसार 32 वर्षीय दोषी को सभी सजाएं अलग-अलग काटनी होगी. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि आजीवन कारावास की सजा 17 साल बाद शुरू होगी. इसका मतलब है कि दोषी को बाकी का जीवन जेल में काटना होगा. सोमवार को अदालत ने सूरज को अपनी पत्नी को कोबरा सांप से डसवाकर मारने का दोषी करार दिया था.

क्या है आजीवन कारावास की सजा
आजीवन कारावास का मतलब दोषी को बाकी का जीवन जेल में काटने से है. तमाम मामलों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की व्यख्या की है. इसके मुताबिक आजीवन कारावास के दोषी को कम से कम 14 साल और अधिकतम पूरा जीवन जेल में काटना होता है.

यहां रोचक बात यह है कि जब इंडियन पीनल कोड बनाया गया तब आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान नहीं था. 1955 में आईपीसी के सेक्शन 53 के तहत ‘ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ’ की जगह ‘इंप्रीजमेंट फॉर लाइफ’ की व्यवस्था की गई.

इस सजा के पीछे का तर्क दोषी को समाज से पूरी तरह से अलग करना होता है. इससे दोषी भविष्य न केवल फिर से कोई अपराध करने से बचेगा बल्कि वह यह सोचने पर मजबूर होगा कि उसने आखिर क्या गलती की है.

सीआरपीसी के तहत प्रावधान
सीआरपीसी के तहत कई ऐसे प्रावधान हैं जिसके तहत आजीवन कारावास की सजा दी जाती है. यहीं पर आईपीसी में एक प्रावधान है जिससे लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि आजीवन कारावास की अवधि क्या होती है. सीआरपीस के सेक्शन 55 और सेक्शन 57 में इसकी चर्चा है.

आईपीसी के प्रावधान
आईपीसी के सेक्शन 432, सेक्शन 433 और सेक्शन 433ए में आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है. इन सभी प्रावधानों में आजीवन कारावास की अवधि को लेकर काफी कंफ्यूजन है.

इसी कंफ्यूजन को सुप्रीम कोर्ट ने अपने तमाम फैसलों में स्पष्ट किया है. ‘नायब सिंह बनाम पंजाब सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी के सेक्शन 55 और आजीवन कारावास की अवधि की व्यख्या की है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आजीवन कारावास का एक दोषी 14 साल तक जेल में रहने के बाद रिहाई का दावा नहीं कर सकता है. आजीवन कारावास दोषी की मौत तक जारी रहता है. इ

स सजा की अवधि को केवल माफी (remission) और सजा में बदलाव की स्थिति (commutation) में कम किया जा सकता है.

निष्कर्ष
जैसा कि आजीवन कारावास की सजा से स्पष्ट है कि यह सजा पूरे जीवन के लिए है. हालांकि कोई सरकार कुछ खास कारकों पर विचार कर कैदी को राहत दे सकती है. इस कारकों में कैदी का व्यवहार, उसके परिवार की स्थिति, उसकी उम्र और जेल में कैदी के काम काफी मायने रखते हैं.

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