उत्तराखंड

Uttarakhand Election: 10 साल से अटका है 4 नए ज़िलों के गठन का पेंच, इस बार क्या रंग लाएगा चुनावी मुद्दा?

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पिथौरागढ़. चुनावी साल में उत्तराखंड में नये ज़िलेे बनाने को लेकर सियासी माहौल गर्म है. इस कार्यकाल के आखिरी कुछ महीनों में बनी राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार जहां ज़िला पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही है, वहीं विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर तेवर अपना रहा है. कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के प्रमुख हरीश रावत ने एक बड़ा बयान जारी करते हुए पिछले दिनों ही ऐलान किया था कि कांग्रेस की सरकार बनने के दो साल के भीतर नौ नये ज़िले बनाए जाएंगे. अब विपक्ष का मुद्दा यह है कि बीजेपी ने 2011 में 4 नये ज़िलों का जीओ तो जारी किया था, लेकिन ये ज़िले अभी तक वजूद में नहीं आ पाए हैं.

रमेश पोखरियाल निशंक सरकार ने 2011 में डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार और यमुनोत्री ये 4 नए ज़िले बनाए जाने का ऐलान किया था. भाजपा की खंडूरी सरकार में चारों ज़िलों के लिए शासनादेश भी जारी किया गया था, लेकिन जीओ जारी होने के बाद भी यह घोषणा सिर्फ घोषणा ही बनकर रह गई. असल में 2012 में कांग्रेस सरकार ने ज़िलों के परिसीमन और कुछ नये ज़िलों की ज़रूरत बताकर गेंद ज़िला पुनर्गठन आयोग की झोली में डाल दी थी. तबसे सरकारें आयोग की रिपोर्ट का ही इंतज़ार करने पर मजबूर हैं. सीएम पुष्कर धामी का कहना है कि आयोग की रिपोर्ट आने पर सरकार इस बारे में विचार करेगी.

अलग ज़िलों की मांग पर जारी हैं आंदोलन

नये ज़िलों की मांग को लेकर डीडीहाट में लम्बे समय से आंदोलन चल रहा है. डीडीहाट में ही सीएम धामी का पैतृक घर भी है. यही नहीं, रानीखेत, यमुनोत्री और कोटद्वार में भी ज़िले की मांग को लेकर लोग आए दिन सड़कों पर उतरते हैं. ऐसे में, चुनावी साल में कांग्रेस इस मुद्दे को गर्माना चाहती है. इस मुद्दे पर कांग्रेस राज्य सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़ा कर रही है. कांग्रेस विधायक हरीश धामी का कहना है कि बीजेपी सरकार ने ही 2011 में 4 नये ज़िले बनाने का आदेश जारी किया था, लेकिन 2017 में सरकार बनने के बाद बीजेपी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. अन्य इलाकों में भी नये ज़िले की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन हो रहे हैं.

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डीडीहाट समेत रानीखेत और अन्य इलाकों में भी नये ज़िले की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन हो रहे हैं.

रावत ने कैसे बनाया था चुनावी मुद्दा?

असल में उत्तराखंड में नये ज़िले बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत परिसीमन की है. पहाड़ी इलाकों में भौगोलिक हालात कुछ ऐसे हैं कि हर किसी को संतुष्ट करना आसान नहीं है. शायद यही वजह है कि नये ज़िलों को लेकर विरोध के स्वर भी सुनाई देते हैं. हालांकि कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बनाने के लिए जुटी हुई है. हाल में, सोशल मीडिया पर हरीश रावत ने एक बयान जारी करते हुए लिखा था कि कांग्रेस की सरकार बनी तो नौ नये ज़िले दो साल के भीतर बनाए जाएंगे.

इस बारे में रावत ने यह भी साफ तौर पर लिखा था कि उनकी इस मांग के बाद संभव है कि आनन–फानन में चुनावी दांव के तहत सरकार जाते जाते नये ज़िले बना दे, लेकिन यह व्यावहारिक नहीं होगा. रावत के मुताबिक सरकार के कार्यकाल के अंत में ज़िले बना दिए जाने से न तो ठीक से बजट आवंटन हो पाता है और न ही प्रशासनिक काम. ऐसा करने से ज़िम्मेदारी अगली सरकार के सिर ही आ जाती है.

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