उत्तराखंड

उत्तराखंड : जोखिम भरे रास्तों से देश के अंतिम गांव कुटी पहुंचा नेटवर्क18, जानी ग्रामीणों के मन की बात

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पिथौरागढ़. भारत के अंतिम गांव कुटी तक पहुंचना भले ही कठिन हो, लेकिन यहां पहुंचकर हर किसी को स्वर्ग ही जैसे नज़ारे देखने को मिलना तय है. हिमालय की गोद में बसे इस गांव को निश्चित ही उत्तराखंड के सबसे सुंदर गांव का खिताब दिया जा सकता है. कभी इस गांव तक पहुंचना किसी सपने से कम नहीं था, लेकिन चाइना बॉर्डर को जोड़ने वाली रोड कटने के बाद नेटवर्क 18 पहला ऐसा मीडिया हाउस है, जो कुटी की सरज़मीं तक पहुंचा. अपनी इस यात्रा में नेटवर्क18 ने वहां के लोगों और कुछ सैलानियों के मन की बात के साथ ही उनकी समस्याओं और जीवन के बारे में भी जाना.

कैसे पहुंचा जा सकता है कुटी?
रोड कटने के बाद भी कुटी पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन आपके लोकप्रिय चैनल ने इस चुनौती को पार किया. कुटी पहुंचने के लिए पिथौरागढ़ से 200 किलोमीटर का कठिन सफर तय करना होता है. गगनचुम्बी पहाड़ों को पार कर 12,003 फीट की ऊंचाई पर बसे कुटी पहुंचा जा सकता है. यहां पहुंच कर लगता है, अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो वो यहीं है. चारों और बर्फ से लकदक पहाड़ों के बीच बसा कुटी हर किसी को अपनी ओर खींचता है. यही वजह है कि रास्ता कठिन होने के बाद भी सैलानी यहां पहुंच रहे हैं. सैलानी प्रकाश जोशी का कहना है कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि बॉर्डर का यह गांव इतना सुंदर होगा. उनका कहना है कि शिव की धरती को देखकर वे खुद को भाग्यशाली मानते हैं.

कितनी कठिनाई में जीते हैं कुटी के लोग?
कुटी के ग्रामीण सिर्फ 6 महीने ही अपने गांव में गुज़ारते हैं. हिमालय की गोद में बसा ये गांव जाड़ों में पूरी तरह बर्फ से ढंक जाता है. आजादी के सत्तर दशक बाद भी यहां न तो बिजली है और न ही कोई हेल्थ सेंटर. ग्रामीण खेती के ज़रिए ही अपना पेट पालते हैं. यहां के कुछ लोग इंडो-चाइना ट्रेड में भी हिस्सेदारी करते थे, लेकिन बीते दो साल से ट्रेड बंद होने ये कारोबार भी ठंडा पड़ा है. बॉर्डर के इस अंतिम गांव में एक ही दुकान है, जो आने-जाने वाले सैलानियों के अलावा आईटीबीपी के जवानों से आबाद रहती है.

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आदि कैलाश यात्रा का अंतिम पड़ाव कुटी गांव ही है.

यहां के लोग आज भी ऊन के कारोबार से जुड़े हैं. स्थानीय निवासी अनिता कुटीयाल बताती हैं कि वे सिर्फ 6 महीने ही अपने गांव में रहती हैं. जाड़ों के सीजन में अधिकांश लोग निचले इलाकों की तरफ माइग्रेट करते हैं. वहीं, इंडो-चाइना ट्रेड के ज़रिए परिवार पालने वाले पाल सिंह कुटियाल बताते हैं कि कोरोना संकट के कारण ट्रेड बंद है और लोगों की मुश्किलों में भारी इज़ाफा हो गया है.

कुटी में सुविधाएं भले कम हों, लेकिन यहां कुदरत ने अपना खज़ाना खुले हाथों से लुटाया है. आदि कैलाश और पार्वती सरोवर जाने वाले यात्रियों का ये अंतिम पड़ाव है. बॉर्डर रोड आर्गेनाइज़ेशन अगर रोड को बेहतर बना दे और सरकारें यहां ज़रूरी सुविधाएं मुहैया करवाएं तो कुटी यकीनन विश्व पर्यटन के नक्शे पर आसानी से स्थापित हो सकता है.

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