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Explained: पनडुब्बियों के आधुनिकीकरण में पिछड़ा है भारत, तेज विकास है जरूरी

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 नई दिल्‍ली.  पिछले हफ्ते सीबीआई (CBI) ने भारत (India) की किलो क्लास पनडुब्बियों (Kilo Class submarines)  के आधुनिकीकरण परियोजना (modernisation project) की जानकारी साझा करने के आरोप में सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों और अन्य के खिलाफ दो आरोपपत्र दाखिल किए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अपनी पनडुब्बियों के बेड़े के आधुनिकीकरण के मामले में भारत पहले ही एक दशक पीछे है, जबकि चीन अपनी विशेषज्ञ पनडुब्बियों के मामले में हमसे कहीं आगे निकल गया है. वह पाकिस्‍तान को भी पनडुब्बियां देने की घोषणा कर चुका है और हिंद महासागर में भी इनकी तैनाती करने जा रहा है. ऐसे समय में भारत को अपने पनडुब्बियों के निर्माण और आधुनिकीकरण परियोजना को तेेज करना चाहिए.

भारत के पास कितनी पनडुब्बियां

वर्तमान में भारत के पास 14 पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन हैं जिन्हें एसएसके के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है. एक परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी है, जिसे एसएसबीएन के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है. एसएसके में से, चार शिशुमार क्लास हैं, जिन्हें 1980 के दशक में जर्मनी के सहयोग से भारत में लाया और बनाया गया था. किलो क्लास या सिंधुघोष क्लास की आठ पनडुब्बी हैं जिन्हें 1984 और 2000 के बीच रूस (पूर्व सोवियत संघ) से खरीदा गया था; और तीन कलवरी क्लास स्कॉर्पीन पनडुब्बी हैं, जिन्हें फ्रांस के नेवल ग्रुप, जिसे पहले डीसीएनस कहा जाता था, उनके साथ साझेदारी में भारत के मझगांव डॉक पर बनाया गया था. एसएसबीएन, आईएनएस अरिहंत परमाणु शक्ति बैलिस्टिक मिसाइल वाली पनडुब्बी है जिन्हें पूरी तरह भारत में बनाया गया है. दूसरा एसएसबीएन, आइएनएस अरिघाट जो अरिंहत का सुधरा हुआ प्रकार है, कुछ ही महीनों में आ जाएगा. भारत की ज्यादातर पनडुब्बी 25 सालों से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं और उन्हें कई बार ठीक किया जा चुका है.

भारत के पनडुब्बी अधिग्रहण का इतिहास

भारत को अपनी पहली पनडुब्बी जो फॉक्सटोर्ट क्लास की आईएनएस कलवरी थी, वह दिसंबर 1967 में यूएसएसआर से मिली थी. 1969 तक हमारे पास चार हो पनडुब्बी हो चुकी थी. 1971-74 के बीच भारत ने चार और फॉक्सटोर्ट क्लास पनडुब्बी खरीदी. सेवानिवृत्त कमोडोर अनिल जय सिंह जो चार पनडुब्बियों को कमांड कर चुके थे, और जलसेना के 30 साल के पनडुब्बी निर्माण योजना के ड्राफ्ट निर्माण में शामिल रह चुके है, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 8 फॉक्सटोर्ट पनडुब्बी उस दौर में एक अच्छी संख्या थी, और हम बढिया कर रहे थे. 1974 के बाद एक दशक तक हमने एक भी पनडुब्बी नहीं खरीदी. 1981 में पश्चिम जर्मनी के साथ दो टाइप 209 पनडुब्बी खरीदने का करार हुआ, वहीं दो अन्य को मेझगांव डॉक पर असेंबल किया गया. यह शिशुमार क्लास थी,जिन्हें पहली बार 1986 में कमींशन किया गया. उसी दौरान रूस ने भारत को किलो क्लास पनडुब्बी देने का प्रस्ताव दिया, सिंह भारत की पहली किलो क्लास पनडुब्बी के कमीशन क्रू में थे. 1986 से 1992 के बीच भारत ने यूएसएसआर से 8 पनडुब्बी और दो जर्मनी से प्राप्त की. 1992 और 1994 के बीच दो जर्मन पनडुब्बी भारत में बनाई गई थी, उन्हें भी कमीशन किया गया, इस तरह 1986 से आठ साल के अंदर 12 नई पनडुब्बी भारतीय बेड़े में शामिल हुई. 1995 तक हम दुनिया में सबसे आधुनिक पनडुब्बी वाले देशों में शुमार थे. आगे चलकर बूढ़ा होता फॉक्सटोर्ट डीकमीशन कर दिया गया, आग लगने की वजह से हुए विस्फोटों से आईएनएस सिंधुरक्षक मुंबई में डूब गया. पिछले साल भारत ने आईएनएस सिंधुवीर म्यांमार को तोहफे में दे दिया.

आधुनिकीकरण में इतनी देर क्यों

1999 में सुरक्षा के लिए कैबिनेट समिति की स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण की 30 वर्षीय योजना में, विदेशी ओरिजिनल इक्‍यूपमेंट मैनुफेक्‍चरर (ओईएम) के साथ भारतीय साझेदारी में दो उत्पादन लाइन निर्माण की योजना थी, जिनमें से प्रत्‍येक में  6 पनडुब्बी का निर्मित होतीं. इस परियोजना को पी-75 और पी-75आई नाम दिया गया था. इस 30 वर्षीय योजना से यह अनुमान लगाया गया था कि 2012-15 तक भारत के पास 12 नई पनडुब्बी होंगी. इसी तरह 2030 तक भारत 12 और बना लेगा और भारत के फ्लीट में 24 नई पनडुब्बी होंगी.
अभी कौन सी परियोजना चल रही हैं

पी-75 ने 6 पनडुब्बियों में से अभी तीन कलवरी क्लास स्कोर्पियन पनडुब्बी दी. पी-75आई को तो अभी शुरू होना है. 2008 में सूचना के लिए पहली अर्जी जारी की गई थी. फिर दोबारा 2010 में प्रस्ताव के लिए अर्जी दी गई थी. उस रिक्‍वेस्‍ट फॉर प्रपोजल को अंतत: इस साल जुलाई में जारी किया गया. 2015 में सामने आए रणनीतिक साझेदारी मॉडल के तहत यह भारत की पहली परियोजना होगी. भारत सरकार पहले किसी भारतीय रणनीतिक साझेदार को कॉन्ट्रेक्ट देगी, जिसमें बाद में कोई विदेशी ओईएम साझेदार बनेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना के तहत पहली पनडुब्बी 2032 में कमीशन होगी.
पी-75 हद से ज्यादा पीछे चल रहा है, पहली बोट जो 2012 में कमीशन होनी थी, वह 2017 में कमीशन हुई थी.

चीन की क्या क्षमता है और ये भारत के लिए चिंता की वजह क्यों

भारत को दो वजहों से ज्यादा पनडुब्बियां चाहिए, पहला हमें अपनी खुद की जलीय सुरक्षा के लिए इसकी जरूरत है. दूसरा कारण है कि चीन आने वाले सालों में हिंद महासागर में और ज्यादा जहाज और पनडुब्बी तैनात करने वाला है. चीन, पाकिस्तान को 8 पनडुब्बी और चार डेस्ट्रॉयर दे रहा है जो चीन के द्वारा ही पाकिस्तान के नाम पर इस्तेमाल किये जा सकते हैं.

पेंटागन की 2020 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन वर्तमान में 4 एसएसबीएन को संचालित कर रहा है, उसके पास 6 एसएसएन और 50 डीजल से चलने वाली हमलावर पनडुब्बी हैं. रिपोर्ट के मुताबिक चीनी नौसेना 65 से 70 पनडुब्बियों की संख्या को बनाए हुए हैं. वह पुरानी पनडुब्बियों को नई और आधुनिक पनडुब्बियों से बदल रहा है. चीन पिछले 15 सालों में 12 परमाणु पनडुब्बी बना चुका है. ऐसी उम्‍मीद है कि 2030 तक उनके पास 8 एसएसबीएन होंगे.

परमाणु पनडुब्बी की इतनी मांग क्यों

एसएसएन के पास लंबे समय तक पानी के अंदर रहने की क्षमता होती है. चूंकि वो बैटरी से चार्ज नहीं होती है, इसलिए उन्हें डीजल इंजन के द्वारा चार्ज करने के लिए ऊपर आने की ज़रूरत नहीं होती है. परमाणु ऊर्जा से चलने वाले इंजन द्वारा संचालित इन पनडुब्बियों को ऊपर तभी आना होता है जब इन्हें चालक दल की ज़रूरत का सामान लेना होता है. एसएसएन पारंपरिक पनडुब्बी की तुलना में पानी के नीचे ज्यादा तेज चल सकती है. जिससे पानी के अंदर कम वक्त में ज्यादा दूरी तय की जा सकती है. ये एक तरह का पानी के अंदर चलने वाला फाइटर जेट है.

भारत के पास कितने हैं एसएसएन 

भारत उन 6 देशों में हैं जिनके पास एसएसएन है. हमारे अलावा, अमेरिका, यूके, रूस, फ्रांस और चीन वो देश हैं जिनके पास एसएसएन है. भारत को पहला एसएसएन 1987 में सोवियत नौसेना से मिला था, जिसका नाम आईएनएस चक्र दिया गया था जिसे 1991 में डिकमीशन कर दिया गया था. भारत ने 2012 में रूस से दस साल की लीज पर एक और एसएसएन लिया था. जिसे आईएनएस चक्र-2 कहा गया, जिसे अब लौटाने का वक्त आ रहा है. सरकार ने 12 स्वदेशी पनडुब्बी तैयार करने का फैसला लिया है. बस सवाल ये खड़ा होता है कि यह परियोजना कितनी जल्दी आकार लेती है. क्योंकि विशेषज्ञों की मानें तो सब कुछ समय पर भी चलता है तो इसे तैयार होने में 2035 से 2040 तक समय लग जाएगा. भारत रूस से दो और एसएसएन लीज पर लेना जा रहा है लेकिन वह भारत को 2025 तक मिल पाएंगे. लेकिन इस दौरान भारत अपने खुद के एसएसबीएन, आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघाट विकसित कर चुका है. अभी भारत दो बड़े एसएसबीएन का निर्माण कर रहा है, इनमें बड़ी मिसाइल हो सकती हैं. इन्‍हें S4 और S4* प्रोजेक्ट कहा जाएगा. उम्‍मीद है कि 2030 से पहले चार एसएसबीएन शुरू हो जाएं.

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